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________________ (168) 6 मति सम्पदा ___ मतिसम्पदा का अर्थ है-'बुद्धि वैशिष्टय'। आचार्य विचक्षण बुद्धि के धारक होते हैं। उनकी बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण होती है। इसके भी चार प्रकार हैं 1. अवग्रह-शतावधानी की भांति वस्तु के गुणों को एक ही काल में ग्रहण कर लेते हैं। देखी हुई, सुनी हुई, स्वाद ली हुई, सूंघी हुई और स्पर्श की हुई सभी का ग्रहण शीघ्र कर लेते हैं। 2. ईहा-वैसे ही इन पाँचों के विषय में तत्काल निर्णय भी कर लेते हैं। 3.अपाय-उपरोक्त विषयों के विषय में विचारणा करके तत्काल निश्चयात्मक बना लेते हैं। 4. धारणा-निर्णीत वस्तु दीर्घकालपर्यन्त भी विस्मृत न हो, समय पर शीघ्र स्मृतिगोजर हो, हाजिरजवाबी (तत्काल प्रश्न का उत्तर देवे) होते है। इस प्रकार विषय के रहस्य के ज्ञाता होते हैं। उनकी तलस्पर्शी मेघा से कोई भी विषय अज्ञात नहीं रहता। 7. प्रयोग सम्पदा ___ पर-प्रवादियों को पराजय करने की कुशलता वह प्रयोग सम्पदा है। इसके भी चार प्रकार है 1. शक्तिमान-वादी के साथ संवाद करने में, प्रश्नोत्तर में मेरी विजय होगी या नहीं? इस प्रकार प्रतिवादी तथा अपनी शक्ति, क्षमता का विचार करके वाद करना। 2. पुरुषज्ञान-वादी किस मत का अनुयायी है यह जानकर उसके ही मत एवं शास्त्रों द्वारा वाद करना। जिस परिषद् में वाद करना हो उस परिषद् का जनमानस किस विचारधारा का है? अनुकूल है या प्रतिकूल पूर्व रीति से ज्ञान ले। 3. क्षेत्रज्ञान-वाद स्थल का ज्ञान करके वाद करना। तात्पर्य यह है कि जिस क्षेत्र में वाद किया जा रहा है उस क्षेत्र के लोग उद्धत तो नहीं है? अपमान करने वाले या कपटी, लोभी, या मिथ्यात्वी के आडम्बर को देखकर चलित हो जावे, स्थिर न रहें, इस प्रकार तत्संबंधी क्षेत्र का सूक्ष्मरीति से विचार करके वाद करना। 1. दशा 4.7 2. वही. 4.11
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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