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________________ (165) किसी का नाम आचार्य होना नाम आचार्य हैं। उनका प्रतिबिंब या आकार बनाना स्थापनाचार्य है। शिल्पादि शास्त्रों का ज्ञान करावे वह द्रव्याचार्य है। जो आचार विज्ञान में अनुपयुक्त (उपयोगरहित) है वे भी द्रव्याचार्य हैं। भावाचार्य - जो पांच प्रकार के आचारों का पालन करने वाले, कराने वाले तथा उपदेशक हैं। ज्ञानादि पांच प्रकार के भावाचारों से उपयुक्त होने से वे भावाचार्य हैं। ये भावाचार्य जिनशासन के आधार हैं, चतुर्विध संघ में उल्लास भरते हैं और श्रुतज्ञान के बल पर सकल वस्तु को प्रकाशित करने वाले हैं। श्री जिनेश्वर प्रभु के निवार्ण के पश्चात् निर्ग्रन्थ प्रवचन का धारण, पालन और पोषण करते हैं। ये भावाचार्य पाषाण में अंकुर उत्पन्न करने के समान मूर्ख शिष्यों को पंडित बना देते हैं। सूत्रों में भावाचार्यों को श्री जिनेश्वर के सदृश भी कहा गया है और उनकी आज्ञा को जिनेश्वर की आज्ञा की भांति पालन करने का फरमान किया है। भावाचार्यों की आज्ञा के बिना विद्या एवं मंत्र भी फलीभूत नहीं होते। उनकी आज्ञा से शीघ्र फलदायी होते हैं। ये धर्मोपदेश देने में निरन्तर उद्यत रहते हैं। (ग) आचार्य की आठ सम्पदाएँ दशाश्रुतस्कंध ग्रंथ में आचार्य की अनुपम गौरव गरिमा को अभिव्यक्त करने वाली आठ सम्पदाएँ दर्शाई गई हैं, जो उनके विराट व्यक्तित्व को अभिव्यंजित करती हैं। वे सम्पदाएँ निम्न हैं1. आचार सम्पदा आचार प्रवणता आचार्य का प्रमुख गुण है। आचार्य स्वयं ध्रुव की तरह रहते * हैं। उनको स्वयं साधना से विचलित करने वाली कोई शक्ति नहीं होती। आचार सम्पदा के चार प्रकार है 1. चरणगुणधुवजोगजुत्ते-महाव्रत, समिति, गुप्तिरूप 13 चारित्र के गुणों में ध्रुव, निश्चल, अडोलवृत्ति निरंतर रखते हैं। 2. ते मद्दवगुण संपन्न-मद का मर्दन करके सदैव निरभिमानी रहते हैं। 3. अनियतवृत्ति-शीत-उष्ण काल में गाँव में एक रात्रि और नगर में पाँच रात्रि से अधिक बिना प्रयोजन न रहे और नवकल्पी (चातुर्मास + आठ महिने का प्रत्येक का एक कल्प) विहार करते हैं। आहार-विहार नियमित और अप्रतिबद्ध होता है।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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