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________________ (159) तरह चमकते हैं तथा जिस प्रकार देवों में इन्द्र शोभा पाता है, उसी प्रकार वे श्रमणों में सुशोभित होते हैं। आर्य शय्यंभव सूरिने आचार्य के व्यक्तित्व कों, एवं कृतित्व को व्यक्त किया है कि जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की शुभ रात्रि में ग्रह, नक्षत्र, तारों, से चंद्रमा सुशोभित होता है, अमृत की वर्षा करता हैं, अपनी शीतल चांदनी से जन मानस को शांति प्रदान करता है, वैसे ही आचार्य भी चतुर्विध संघ के परिवार से सुशोभित होते हैं। वे जिनवाणी रूपी अमृत वर्षा करते हैं, भव-ताप से तापित व्यक्तियों को शीतलता प्रदान करते हैं। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने आचार्य की तुलना चक्रवर्ती के वातानुकूलित शीतगृह से की है। जैसे शीतगृह में बाह्य वातावरण की असर नहीं होती। चाहे बाहर ग्रीष्म की कितनी ही गर्मी हो, चाहे पोष माह की कितनी ही कंपाने वाली सर्दी हो या मूसलाधार वर्षा या आंधी हो वातानुकूलित गृह पर उसका कोई असर नहीं होता। वैसे ही आचार्य पर बाह्य परिस्थितियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो, चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल, उनके मन पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। स्थानाङ्ग में आचार्य के जीवन का शब्दचित्र आलेखित किया है कि-आचार्य का जीवन आंवले की तरह ज्ञान रूपी रक्त की अभिवृद्धि करने वाला है, अंगूर की तरह मधुर है, खीर की तरह पूर्ण स्वादिष्ट है और इक्षुखण्ड की तरह रसदार है। ___पंच पंचमेष्ठी में तीसरा पद आचार्य भगवन्त का है। मुमुक्षुओं के लिए मोक्ष साध्य है, तो सदारचरण उसका साधन है। कारण के बिना कार्य का होना संभव नहीं, अतः जिसको मुक्त होने की इच्छा हो उसको मोक्ष के अनन्य साधनभूत सदाचार को जीवन में अपनाना ही होगा। तीसरे पद-निष्ठ आचार्य स्वयं आचार का पालन करते हैं और संसार को भी इस मार्ग पर चलने की सतत प्रेरणा अपने जीवन से एवं उपदेश से देते हैं। पंचाचार का पालन आचार्य करते हैं, उसमें जगत् के समस्त सुन्दर आचारों का समावेश हो जाता है। इन पंचाचारों का पालन अथवा 1. दशवैकालिक 9.1.14 2. वही 9.1.15 3. निशीथ भाष्य 2794 4. स्था. 4.3.320
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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