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________________ (145) उपनिषदों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ ब्रह्म का साक्षात्कार, तादात्म्य, तद्मयता मुक्तावस्था को सूचित करता है। मोक्ष के स्वरूप के विषय में इतना निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि वह निषेधात्मक रूप से जन्म-मरण के चक्र का समाप्त हो जाना, और परिणाम स्वरूप सभी दुःखों का अन्त है। परन्तु यहाँ मात्र निषेधात्मक स्थिति ही स्वीकार नहीं की गई वरन् भावात्मक रूप से वह सच्चिदानन्द ब्रह्म के साथ ऐक्य स्थापित करता है। इस प्रकार यहाँ मोक्ष का सम्प्रत्ययन उपलब्ध होता है। यद्यपि वेदों में मोक्ष की अवधारणा को मान्य नहीं किया गया है, ऐसी सामान्यतया मान्यता है। क्योंकि 'स्वर्गकामो यजेत्' स्वर्ग की कामना के लिए यज्ञ करो-ऐसा वेदों में उल्लिखित है, एवं सर्वत्र ऐसी मान्यता है। तथापि उपर्युक्त उद्धरणों को देखते हुए दुःखों से, जन्म-मरण से छुटकारा होकर परमपद स्वरूप मोक्ष भी परिलक्षित होता है। उक्त सन्दर्भो को देखते हुए मोक्ष का निषेध भी नहीं किया जा सकता। (आ) मीमांसा दर्शन में मोक्ष__ मीमांसा दर्शन भी विशद्ध वैदिक है। पूर्व मीमांसा वैदिक कर्मकाण्ड-यज्ञ यजनादि से विशेष रूप से संबंधित है, तो उत्तर मीमांसा ज्ञान काण्ड पर प्रधान रूप से विवेचना करता है। इनके ग्रन्थ श्लोकवार्तिक तथा तंत्रवार्तिक में इसकी प्ररूपणा है कि 'क्या आनन्द की प्राप्ति मोक्ष है? इसका समाधान करते हुए कहा है कि आत्मा में होने वाले समस्त विशेष गुणों का उच्छेद हो जाना ही मोक्ष है। क्योंकि इसमें ज्ञान-कर्म समुच्चय ही मोक्ष का साधन स्वीकार किया गया है। मोक्ष प्राप्ति के लिए कहा गया है कि मोक्ष को चाहने वाला आत्मोपासना से मोक्ष प्राप्त करे। यह आत्मोपासना आत्मज्ञान से संभव है। जिसे आत्मज्ञान हो जाता है, ब्रह्मलोक की प्राप्ति हो जाती है, वह दुबारा संसार में नहीं लौटता, मीमांसा का यह मत जैन मान्यता से साम्य रखता है। जिस प्रकार जैन मन्तव्य है सिद्धों का संसार में पुनरागमन नहीं होता, उसी प्रकार मीमांसक भी यह स्वीकार करते हैं कि ब्रह्मलोक की प्राप्ति होने पर यह आत्मा संसार में दुबारा नहीं आता। जब धर्म और अधर्म के अदृश्य होने के परिणामस्वरूप शरीर का पूर्ण रूप से निरोध (अवरोध) हो जाता हैं-वही मोक्ष है। हमारे बंधन और सशरीरी होने का कारण यह है कि हमें पाप और पुण्यकर्मों 1. तंत्र वार्तिक पृ. 282 2.G. N. Jha : The Prabhakara Schools of Purva Mimamsa (उद्धृत भारतीय दर्शन में मोक्ष चिन्तन पृ.१२९-१३०)
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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