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________________ (143) आरण्यकों में मुक्ति आरण्यक ग्रन्थों में भी प्रत्यक्ष रूप से मोक्ष का विवेचन पाया जाता है। ऋग्वेद के ऐतरेय आरण्यक में परमपुरुषार्थ मोक्ष के दो उपाय बताए गये हैं-कर्म और ज्ञान / जो आहवनीय आदि अग्नि की उपासना करते हैं, वे परम्परा ब्रह्म सायुज्य को पाते हैं। तथा अहंग्रह (मैं ही ब्रह्म हूँ-अहं ब्रह्मास्मि) उपासना से साक्षात् ब्रह्म सायुज्य को पाते हैं। इसलिए आत्मज्ञान ही मोक्ष का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसमें ही अन्य ऋचा में यह परब्रह्म तत्त्व का प्रतिपादक है, यह कहा गया है। मोक्ष प्राप्ति के विधान में उल्लेख है कि उसी परब्रह्म परमात्मा का 'अयमहमस्मि' इस रूप से ध्यान करना चाहिये। इसी से मोक्ष मिलता है। कृष्ण यजुर्वेद के अन्तर्गत तैत्तिरीय आरण्यक में मुक्ति प्रतिपादक अंश का उल्लेख है कि जिसे ब्रह्म का साक्षात्कार हो चुका है, उसके अनुभव का वर्णन है। पुनः कथन है कि ब्रह्मज्ञानी तो अपने को ब्रह्मस्वरूप जानकर, जन्ममरण नहीं-यह निश्चय करता हुआ, अपनी मृत्यु का भय छोड़ देता है। मृत्यु तो शरीर की होती है, आत्मा की नहीं, अतः उसे कोई भय नहीं रह जाता है। विराट् पुरुष के साक्षात्कार के बिना अमृतत्व प्राप्ति का दूसरा मार्ग नहीं है। क्योंकि कर्म से या दूसरे उपाय से अमृतत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकते। दो प्रकार के ब्रह्म उस परब्रह्म का ज्ञान कराने के विषय में मंत्र में दो प्रकार के ब्रह्म का वर्णन किया है-एक शब्द ब्रह्म है, दूसरा अशब्द ब्रह्म है। शब्द से ही अशब्द ब्रह्म प्रकाशित होता है। 'ओं' शब्द है, इसके उच्चारण से ऊर्ध्व गति करता हुआ, अशब्द में जाकर मिल जाता है। यही उत्तम गति है। यही अमृत है, वही सायुज्य है। जैसे मकड़ी तन्तु से ऊपर से चढ़कर अवकाश को प्राप्त करती है, वैसे ओंकार के ध्यान से आत्मा ऊपर से गति करता हुआ, स्वातंत्र्य को प्राप्त करता है। इसी प्रकार शब्दों का अतिक्रमण कर अशब्द, अव्यक्त ब्रह्म में लीन होते हैं। उनका स्वरूप अलग नहीं होता। 'ओं' 1. ऐतरेय आरण्यक 2, 1.1 2. ऐ. आ. का. 2, अ. 1, खं.६ 3. ऐ. आ. आ. 2, अ-३ खण्ड 2,14 4. तै. आ. प्र. 9, अनु. 11, का. 4-5 5. वही. प्र. प्रा. 1 अनु. 11 का 5-6 6. वही प्र. पा. 3 अनु. 13 (1)
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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