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________________ (129) यहाँ ब्राह्मण परम्परा जो अवतार का धरा पर पुनः पुनः आगमन मान्य करते हैं, वैसा स्वीकार नहीं करके अपुनरावृत्ति मान्य की गई है। वे सदाकाल के लिए वहाँ जाकर प्रतिष्ठित हो जाते हैं। पुनरागमन का अभाव मानने से मोक्षस्थान में जीवों की भीड़ हो जावेगी और संसार जीवों से रिक्त हो जावेगा यह आशंका भी नहीं करनी चाहिये। क्योंकि जितने जीव व्यवहार राशि से निकलकर मोक्ष जाते हैं, उतने ही अनादि अव्यवहारि (वनस्पति) राशि से निकल कर व्यवहार राशि में आते हैं। निगोद का अनन्तवाँ भाग ही मोक्ष जीवों से भरा है उनमें से अनंतवाँ भाग ही जीवों का मोक्ष हो सकता है। अतः संसार का जीवों से रिक्त होने की संभावना ही नहीं। ___ इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि सिद्ध परमेष्ठी का पुनः संसार में आवागमन नहीं होता। अर्हतापेक्षा भिन्नता __ अर्हत् एवं सिद्ध में कथंचित् भेदाभेद है। यद्यपि स्वभाव की अपेक्षा से अर्हत् एवं सिद्ध में किञ्चिद् मात्र भी भिन्नता न होने पर भी, ज्ञानादि गुणों में समानता होने पर भी दोनों में कथंचित् भिन्नता है। यह भिन्नता ही एक ऐसी रेखा खींच देती है जो दोनों पदों को अलग कर देती है। जैसा कि पूर्व पृष्ठों में हमने देखा कि सिद्ध आठ कर्मों का क्षय करते हैं। कर्मक्षय होने के पश्चात् ही सिद्ध हो सकते हैं। जबकि अर्हत् मात्र चार घाती कर्मों का क्षय करके अर्हत् पद प्राप्त करते हैं। वैसे देखा जाये तो चार अघातिया कर्मों के नष्ट हो जाने पर अर्हत् की आत्मा में समस्त गुणों का प्राकट्य हो जाता है। सिद्ध एवं अर्हत् में गुण कृत भेद तो नहीं होता किन्तु अर्हत् में गुणों के विद्यमान होने पर भी अघातिया चारों कर्मों का उदय एवं सत्त्व दोनों पाये जाते हैं। इस प्रकार दोनों में गुणकृत, भिन्नता भी किंचित् है। ___ यहाँ शंका होती है कि अघातिया कर्म शुक्लध्यान रूपी अग्नि के द्वारा अधजले से हो जाने के कारण उदय और सत्त्वरूप विद्यमान रहते हुए भी क्या 1. मोक्ष. 6.5, 66 2. स्या. मं 29.331.13. 3. नवतत्त्व प्रकरण-६०
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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