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________________ (119) उस आठवीं पृथिवी के ऊपर 7050 धनुष जाकर सिद्धों का आवास है। इस आवास क्षेत्र का प्रमाण (क्षेत्रफल)-है 840440815625/8 योजन।' __जहाँ पर जन्म, जरा, मरण, भय, संयोग, वियोग, दुःख, संज्ञा और रोगादि नहीं होते, वह सिद्धिगति कहलाती है। मोक्ष शुद्ध रत्नत्रय की साधना से अष्ट कर्मों की आत्यन्तिकी निवृत्ति द्रव्यमोक्ष है और रागादि भावों की निवृत्ति भावमोक्ष है। यह मनुष्य गति से ही संभव है, अन्य नरक, तिर्यञ्च, देव, गति से नहीं। अन्तिम भव (जीवन) में स्वाभाविक उर्ध्वगति से लोक के शिखर पर जा विराजतें हैं। जहाँ अनन्तकाल एक अनन्त अतीन्द्रिय सुख का उपभोग करते हुए, चरम शरीर होता है। जैन परम्परा उनके प्रदेशों की सर्व व्यापकता स्वीकार नहीं करती। और न ही इसे निर्गुण-शून्य मानते हैं। जितने जीव मुक्त होते हैं, उतने ही निगोद राशि से निकलकर व्यवहार राशि में आ जाते हैं। इससे लोक कभी जीवों से रिक्त नहीं होता। मोक्ष का सामान्य लक्षण ___ बंध हेतुओं (मिथ्यात्व कषायादि) के अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है। इस अवस्था में आत्मा कर्ममल (अष्टकर्म), कलंक (राग, द्वेष, मोह) और शरीर को अपने से सर्वथा पृथक् कर देता है, फलस्वरूप उसके अचिन्त्य स्वाभाविक ज्ञानादि गुण एवं अव्याबाध सुख को प्राप्त करता है। यह मोक्ष शब्द 'मोक्षणं मोक्षः' क्रियाप्रधान भाव साधन है। मोक्ष असने धातु से बना है अथवा जिनसे कर्मों का समूल उच्छेद हो वह तथा कर्मों का पूर्णरूप से छूटना है। जिस प्रकार बन्धनयुक्त प्राणी बेड़ी आदि के छूट जाने पर स्वतन्त्र होकर यथेच्छ गमन करता हुआ सुखी होता है, उसी प्रकार कर्मबन्धन का वियोग होने पर आत्मा स्वाधीन होकर ज्ञानादि रूप अनुपम सुख का अनुभव करता है। इस प्रकार आत्मस्वभाव से मूल व उत्तर कर्म प्रकृतियों के संचय का छूट जाना ही मोक्ष है। 1. वही. 9.3-4 2. धवला. 1/1, 1, 24 गा. 132/204, गोम्मटसारजी, व. 152, 375 3. तत्त्वार्थसूत्र 10.2 4. सवार्थ सिद्ध 1.1 उत्थानिका, परमात्म प्रकाश 2.10, ज्ञानार्णव 3.6-10, नियमसार ता. वृ-४, द्रव्यसंग्रह टीका-३०१, 154.5, स्याद्धादमंजरी 8.86.3 5. राजवार्तिक 1.4.27.12, 1.1.37.10, 15, 1.4 : 13. 26.9. ध. 13.5.5.82.348. 9 6. नयचक्र (बृहद्) 159, समयसार (आत्मख्याति) 288.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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