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________________ (102) गया। इस प्रकार ये अवधारणाएँ भारतीय धर्म/दर्शन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। 1. प्रत्येक धर्म में महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि उसका एक धर्मप्रवर्तक होता है, जो धर्म-साधना तथा आचार-संहिता-पद्धति का निर्धारण करता है। वह उस धर्म के धार्मिक, सामाजिक नियमों और मर्यादाओं का संस्थापक होता है। उसके अनुयायियों का उनके प्रति समर्पण भाव होता है तथा उनके वचन प्रमाणभूत होते हैं। ___2. सभी धर्मों में साधना हेतु एक आदर्श निर्धारित होता है, जो धार्मिक जीवन का साध्य भी कहा जा सकता है। संसार में धार्मिक दृष्टिकोण से प्रत्येक धर्म के लिए ये दोनों ही तत्त्व अतिमहत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जो भी धर्म-प्रवर्तक होता है, वह आदर्श रूप तो होता ही है, साथ ही साध्य रूप भी होता है। वह पथ-प्रदर्शक भी होता है। वह प्रथम सोपान भी होता है, तो मंजिल भी होता है। ___ ईश्वरवादी धर्मों में जहाँ ईश्वर को, ईश्वर के अवतार को धर्मप्रवर्तक मान्य किया तो दूसरी ओर उनको ही साध्य रूप से भी अंगीकार किया गया। अनीश्वरवादी धर्मों में यही रूप धर्मप्रवर्तकों में दृश्यमान हुआ। यही नहीं उसे साधना का उच्चतम आदर्श भी मान्य किया गया। हिन्दु धर्मों में ही नहीं जैन-बौद्ध धर्मों में भी अर्हत्-बुद्ध को आदर्श माना। इस प्रकार प्रत्येक धर्म प्रवर्तक साध्य रूप से आदर्श रहे हैं। हिन्दु धर्म में ईश्वर-अवतार, जैन धर्म में अर्हत्, बौद्ध धर्म में बुद्ध, इस्लाम धर्म में पैगम्बर, ईसाई धर्म में ईश्वर-पुत्र केन्द्रीय तत्त्वबिन्दु रहे हैं। ईश्वर-अवतार हिन्दु पुराणों में ईश्वर-अवतार की अवधारणा स्वीकार की गई है। अवतार सामान्यतया 'नीचे उतरने वाला' अर्थ में रूढ़ है। किन्तु प्रस्तुत संदर्भ में अवतारदैवीय शक्ति दिव्य लोक से धरा पर अवत्तीर्ण होना उतरना है। जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया है कि ऋग्वेद में अवतार का अर्थ विनाश या संकट दूर करना है। वस्तुतः अवतरण का अर्थ यहाँ विष्णु या ईश्वर के अवतरण से है। किन्तु प्रारम्भ में यह प्रजापति एवं इन्द्र के अवतरण में था। उत्तरकाल में यह विष्णु के लिए ही प्रयुक्त होने लगा। अवतार का प्रारम्भिक वर्णन महाभारत-पुराणों में उपलब्ध होता है। महाभारत में 10 अवतारों का उल्लेख है। विष्णुपुराण में दशावतारों का समग्र रूप से नहीं किन्तु यत्र-तत्र 10 अवतारों की सूची उपलब्ध हो जाती है। आगे जाकर भागवत में अवतारवाद चरम उत्कर्ष को प्राप्त हुआ। यहाँ विष्णु के
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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