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________________ जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी यह नमस्कार महामन्त्र जीवमात्र का कल्याण करने वाला तथा सिद्धि प्रदाता है / इसके ध्यान मात्र करने से ही सत्त्व सब पापों से छूट जाता हैध्यायेत्पञ्च नमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते / सत्त्व जिस किसी भी अवस्था में क्यों न हो, चाहे वह पवित्र हो अथवा अपवित्र, इस महामन्त्र के स्मरण करते ही वह बाह्य और आभ्यन्तर दोनों ही ओर से पवित्र हो जाता है / यह अपराजित महामन्त्र है, सम्पूर्ण विध्नों का विनाशक, पापों का प्रणाशक तथा सब मंगलों में प्रथम मंगल है / 'अहम्' ये अक्षर परब्रह्म परमेष्ठी के वाचक हैं और सिद्धसमूह के सुन्दर बीजाक्षररूप हैं। मैं उन्हें सब प्रकार से नमस्कार करता हूं, जो अष्टकर्मो से मुक्त करने वाला, मोक्षलक्ष्मी का निकेतन, सम्यक्त्व आदि गुणों से युक्त, विध्न-समूह और भूत-पिशाच तथा पन्नगअर्थात् सर्प आदि के विष को नष्ट करने वाला है-- अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्परमात्मानं स बाह्याभ्यन्तरे शुचिः।। अपराजितमन्त्रो 5 यं सर्वविघ्नविनाशनः। मङ्गलेषु च सर्वेषु प्रथमं मङ्गलं मतः।। ऐसो पंच णमोयारो सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं / / अर्हमित्यक्षरं ब्रह्मवाचकं परमेष्ठिनः। सिद्धचक्रस्य सद्बीजं सर्वतः प्रणमाम्यहम्।। कर्माष्टक-विनिर्मुिक्तं मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम्। सम्यक्त्वादि-गुणोपेतं सिद्धचक्रनमाम्यहम्।। विघ्नौघाः प्रलयं यान्ति शाकिनी-भूत-पन्नगाः। विषं निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे / / ' ऐसे ही महामन्त्र की महत्ता का आकलन करते हुए आचार्य जिनसे कहते हैं कि जो योगिराज इस मन्त्र का ध्यान करते हैं, वे ब्रह्मतत्त्व को जान लेते हैं / अतः यह पञ्चब्रह्ममय मन्त्र है। पञ्चब्रह्ममयैर्मन्त्रैःसकलीकृत्य निष्कलम् / परं तत्त्वमनुध्यायन् योगी स्याद् ब्रह्मवित् / / इसजगत् के कोटि-कोटि सत्त्वों ने इस सार्वभौम, त्रिकालवित् महामन्त्र का जाप कर अपनी लक्ष्यसिद्धि की है !भव्य जीव इस मन्त्र के प्रभाव से दशों दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ नियम से मुक्तिलाभ करता है / यह नमस्कारमन्त्र अमोघशस्त्र एवं कवच है, परकोटे की रक्षा के लिए खाई है 1. "ज्ञान० पू०, नित्य-पूजा, श्लो०२-७ 2. महापुराण, 21. 236
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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