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________________ आचार्य - परमेष्ठी 139 1. सारणा : आचार्य संघके साधु-साध्वियों को तथा श्रावक-श्राविकाओं को दैनिक क्रियाओं तथा नैतिक कर्तव्यों का स्मरण दिलाता रहे। यह सारणा (स्मारणा) है। एक आचार्य जो अपने शिष्यों की सारणा नहीं करता अर्थात् उनको ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र सम्बन्धी आचरण की स्मृति नहीं कराता, वह हितकारी नहीं है चाहे फिर वह जिह्मा-चुम्बन भी क्यों न करे / तथा जो आचार्य अपने शिष्यों की सारणा कराता है, वह दण्ड से प्रताड़ित करता हुआ भी श्रेष्ठ है।' (2) वारणा : कोई साधु-साध्वी या श्रावक-श्राविका अपने व्रत, नियम, सिद्धान्त या धर्म से भ्रष्ट हो रहा हो, अतिचार या अनाचार के मार्ग पर चल रहा हो, तो आचार्य उसे सम्यक शिक्षा देकर उस दोष से उसे हटाए, यही वारणा है। जो आचार्य आगमोक्त विधिपूर्वक संग्रह और उपग्रह नहीं करता तथा श्रमण और श्रमणियों को दीक्षा देकर उनको सामाचारी की शिक्षा नहीं देता तथा बाल शिष्यों को सम्यग् मार्ग पर नहीं लाता फिर चाहे वह जिहा-चुम्बन भी क्यों न करे, वस्तुतः वह आचार्य शत्रुस्वरूप है। 3. चोयणा: 'चोयणा' से अभिप्राय है--प्रेरणा देना |आचार्य साधुओं को प्रमाद से हटाने के लिए प्रेरणा देता रहे / ज्ञान, दर्शन, चारित्र जो कि आत्मा के सार हैं, इन तीनों में जो स्वयं को और गण को भी ले जाता है, स्थित करता है, वही आचार्य है। जो आचार्य प्रमादयुक्त अथवा आलस्य के वशीभूत हुए शिष्यवर्ग को मोक्ष मार्ग की प्रेरणा नहीं देता है, वह आचार्य आज्ञा का अतिक्रमण करता है, मर्यादा का उल्लंघन करता है। 4. पडिचोयणा: पुनः पुनः प्रेरणा देना ही पडिचोयणा' हैं, यदि कोई साधक मृदु वाक्यों 1. जीहाए विलिहंतो न भद्दओ सारणा जहिं नत्थि। डंडेण वि ताडंतो स भद्दओ सारणा जत्थ।। गच्छायार०.गा०१७ 2. संगहोवग्गहं विहिणा न करेइ य जो गणी। समणं समणिं तु दिक्खित्ता सामायारिं न गाहए।। बालाणं जो उ सीसाणं जीहाए उवलिंपए। न सम्मग्गं गाहेइ सा सूरी जाण वेरिओ।। वही, गा० 15-16 3. नाणम्मि दंसणम्मि य चरणम्मि य तिसु वि समयसारेसु। चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं च सो य गणी।। गच्छायार०. गा०२० 4. जो उप्पमायदोसेणं, आलस्सेणं तहेव य। सीसवग्गं न चोएइ, तेण आणा विराहिया / / वही, गा०३६
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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