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________________ आचार्य - परमेष्ठी 137 (ग) कालोचित क्रियासामग्री समानयन : जिस-जिस काल में जो-जो क्रिया करनी हो उस-उस काल में उस क्रिया के योग्य सामग्री जुटाना कालोचित क्रियासामग्री समानयन सम्पदा है। इसके विषय में व्यवहारभाष्य में कहा गया है कि आचार्य को यथाससमय स्वाध्याय, उपकरणों की प्रत्युप्रेक्षा, उपाधि का संग्रह और भिक्षा आदि की व्यवस्था करनी चाहिए।' (घ) यथागुरु पूजा-सत्कारकरण : यथागुरुपूजासत्कारकरण से अभिप्राय है कि संघ में यथोचित विनय की व्यवस्था बनाए रखना / व्यवहारभाष्य में गुरु के तीन प्रकार बतलाए गए हैं--(१) प्रव्रज्या देने वाला गुरु, (2) अध्यापन कराने वाला गुरु और (3) दीक्षा पर्याय में बड़े मुनि। इन तीनों प्रकार के गुरुओं की पूजा-सत्कार करना अर्थात् उनके आने पर खड़े होना, उनके दंड को ग्रहण करना, उनके योग्य आहार का सम्पादन करना, विहार आदि के समय उनके उपकरणों का भार ढोना तथा उनका मर्दन आदि करना ही यथागुरु पूजासत्कारकरण हैं। इससे संघ में विनय का समुचित पालन होता है और संघ में व्यवस्था भी बनी रहती है जिससे संघ विकास की ओर अग्रसर होता है। ये आठ सम्पदाएं आचार्य की आध्यात्मिक सम्पत्तिवर्द्धक हैं तथा संघ में तथा संघ से बाहर भी मान-सम्मान बढ़ाने वाली है। अतः आचार्य में इन आठों सम्पदाओं का होना आवश्यक है। (छ) आचार्य के कर्त्तव्य : ___ संघका मुखिया होने के नाते संघ की व्यवस्था बनाए रखने का कर्तव्य आचार्य का ही होता हैं। यदि किञ्चित् भी कमी रह जाए तो सारी व्यवस्था बिगड़ सकती है। अतः संघ में समुचित व्यवस्था को बनाए रखने के लिए आचार्य को निम्न छह बातों का ध्यान रखना चाहिए -- (1) सूत्रार्थस्थिरीकरण : सूत्र के विवाद ग्रस्त अर्थ का निश्चय करना अथवा सूत्र और अर्थ में चतुर्विध संघ को स्थिर करना, यह आचार्य का ही कर्तव्य है। 1. जं जांभि होइ काले कायव्वं तं समाणए तंभि / सज्झाया पह उवहि उप्पायण भिक्खमादी य / / व्यवहारभाष्य, 10.263 2. अह गुरु जेणं पव्वावितो उ जस्स व अहीति पांसमि / अहवा अहा गरु खलु हवति रायणियतरागा उ।। तेसिं अब्भुट्ठाणं दंडग्गह तह य होइ आहारे / उवही वहणं विस्सामणं य संपूयणा एसा / / वही, 10. 264-65 3. सुत्तत्थथिरीकरणं, विणओ गुरुपूय सेहबहुमाणो। दाणवति-सद्धवुड्ढी, बुद्धिबलवद्धणं चेव।। ओधनियुक्ति, गा० 628
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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