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________________ 126 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी (1) सामयिक : सामायिक का समानार्थक शब्द 'समता' है / जीवन-मरण, लाभ -अलाभ, संयोग-वियोग, मित्र-शत्रु और सुख-दुःख आदि में समभाव रखना ही सामायिक कहलाती है / ' (2) चतुर्विंशतिस्तव : भगवान् ऋषभनाथ से लेकर महावीर स्वामी पर्यन्त 24 तीर्थंकरों का नामोच्चारण, उनका गुणानुवाद, पूजन तथा मन-वचन-काय की शुद्धिपूर्वक जो उन्हें प्रणाम किया जाता है, उसे चतुर्विंशतिस्तव कहते हैं / 2 (3) वन्दना : अरहन्त एवं सिद्ध तथा तप, श्रुत एवं ज्ञान आदि गुणों में जो श्रेष्ठ हैं उन्हें और विद्या एवं दीक्षागुरु, इन सभी का कायोत्सर्गपूर्वक अथवा इनकी भक्तिपूर्वक जो प्रणाम किया जाता है, वह वन्दना कहलाती है / (4) प्रतिक्रमण : आहार आदिद्रव्य,शयनासनआदिक्षेत्र पूर्वाह्नअपराह्न आदि काल और मन की प्रवृत्तिरूप भाव, इनके विषय में जो अपराध किया गया है उसके प्रति निन्दा व गर्हापूर्वक मन-वचन-काय से प्रतिक्रिया अभिव्यक्त कर शुद्ध करने का नाम प्रतिक्रमण है / सामायिक और प्रतिक्रमण : सावद्ययोग से निवृत्ति सामायिक है और अशुभ मन, वचन, काय से निवृत्ति प्रतिक्रमण है / " यही इन दोनों में विशेष भिन्नता है / 5. प्रत्याख्यान : तीनों कालों के आश्रित नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन छ: से सम्बद्ध जो सेवन के योग्य न हो उसका मन-वचन-काय व कृत-कारित-अनुमोदन इन नौ प्रकारों से परित्याग करना, प्रत्याख्यान कहलाता है। प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान : __मूलाचारवृत्ति में कहा गया है कि जो अतीतकाल में उत्पन्न दोषों का 1. वही, 23 2. मूला० 1.24 3. वही, 1.25 4. स्वयं के द्वारा दोषों को अभिव्यक्त किया जाना निन्दा है / 5. गुरु अथवा आचार्य के सामने अपने दोषों का प्रकट किया जाना गर्दा है / 6. मूला०, वृ० 1.26 7. सावद्ययोगनिवृत्तिः सामायिकं / प्रतिक्रमणमपि अशुभमनोवाक्कायानिवृत्तिरेव / भग० आ०, गा० टी०,११८, पृ० 156 8. मूला० 1.27
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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