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________________ 114 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी तो भाषण न करें, मौन एवं क्षमाभाव ही रखे / (2) भय-त्यागः कई बार भय के वंश में होकर असत्य बोला जाता है / अतः सर्वप्रथम तो भयभीत ही न हो / यदि कभी ऐसी अवस्था उत्पन्न हो भी जाए तो सत्य की रक्षा के लिए भाषण न करें, धैर्य रखें। (3) हास्य-त्यागः हंसी मजाक में ही अधिक झूठ बोला जाता है / हास्य का उदय होने पर सत्य की रक्षा के लिए वचन का प्रयोग न किया जाना अर्थात् मौन रहने में ही हास्य-त्याग की पूर्णता है / (4) लोभ-त्याग :लोभवश भी झूठ बोला जाता है जिससे सत्य की हानि होती है / अतः जब लोभ का उदय हो तब सत्य की रक्षा के लिए न बोलें और लोभ का परिहार करते हुए सन्तोष धारण करें / (5) मोह-त्याग:यहाँ मोह-त्याग सेअभिप्राय है--अनुवीचिभाषण। वीची पूर्वाचार्यों की 'वचन रूप तरंग को कहते हैं, उसका अनुसरण करते हुए बोलना अनुवीचि भाषण है / इस प्रकार अनुवीचि भाषण का स्पष्ट अर्थ यह है कि जिनागम के अनुसार वचन बोलना' | अतः महाव्रतधारी सदैव शास्त्रपरम्परा का उल्लंघन करते हुए ही बोलें। तृतीय महाव्रत-अचौर्य : तुच्छ से भी तुच्छ वस्तु को स्वामी की आज्ञा के बिना ग्रहण न करना और केवल निर्दोष वस्तु को ही लेना अचौर्य महाव्रत है / साधु के लिए सचित्त वस्तुओं के ग्रहण करने का निषेध है / यदि किसी सचित्त वस्तु को साधु स्वामी के दिए जाने पर भी ग्रहण करता है तो वह भी चोरी ही है ।अतः साधु को सदोष वस्तु के ग्रहण का भी त्याग करना चाहिए / अचौर्य महाव्रत की पांच भावनाएं : __शून्यागार निवास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण, एषणा-शुद्धि सहितत्व और सधर्माविसंवाद ये पाँच अचौर्य महाव्रत की भावनाएं हैं / 3 1. दे० - चारित्त पाहुड, गा० टी०.३२ 2. दन्त--सोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं / अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं / / उ० 16.28 चित्तमन्तमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं / न गेण्हइ अदत्तं जे तं वयं बूम माहणं / / वही, 25.25 3. सुण्णायारनिवासो विमोचितावास जं परोधं च / एसणसुद्धिसउत्तं साहम्मी संविसंवाद / / चारित्तपाहुड, गा० 33
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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