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________________ 112 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी प्रथम महाव्रत : अहिंसा मन-वचन-काय-तथा कृत- कारित- अनुमोदना से किसी भी परिस्थिति में त्रस एवं स्थावर जीवों को पीड़ित न करना अहिंसा है / मन में किसी दूसरे को पीड़ित करने पर उसका समर्थन करना भी हिंसा है / अतः कहा गया है कि 'जो हिंसा का अनुमोदन करता है, वह भी उसके फल को भोगता है / सब सुखी रहना चाहते हैं तथा सभी प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है, अतः किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए' / ' अहिंसा का पालन करने वाला साधु यहाँ तक कि वह अपना अहित करने वाले के प्रति भीक्षमाभाव रखता है, वह अभयदान देकर सदा विश्वमैत्री की भावना रखता है तथा वध करने के लिए तत्पर हुए प्राणी के प्रति भी वह तनिक भी क्रोध नहीं करता / " वैदिक संस्कृति में भी अहिंसा को समस्त प्राणियों के धार्मिक कार्यो का कल्याणकारी अनुशासन माना गया है / अतः अहिंसा व्रत का मन-वचन-काय पूर्वक पालन करना श्रेयस्कर है / अहिंसा महाव्रत की पांच भावनाएं : जैन दर्शन में अहिंसा व्रत के सम्यग् प्रकार से परिपालन के लिए पांच भावनाओं के पालन पर बल दिया गया है / ये भावनाएं हैं -- वचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपणसमिति और आलोकित पान-भोजन। (1) वचनगुप्ति भावना : वचनगुप्ति से अभिप्राय है अपनी वाणी पर नियन्त्रण रखना / वाणी से किसी भी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट अथवा पीड़ा न पहुंचे, यही वचनगुप्ति भावना है / (2) मनोगुप्ति भावना :धर्मी-अधर्मी के प्रति समत्व भाव रखना अथवा मन को अशुभ ध्यान से हटाकर शुभ ध्यान में लगाना, मन में किसी भी प्राणी के प्रति हानिकारक विचार न रखना - यही मनोगुप्ति है / (3) ईर्या समिति : चलते-फिरते समय इस प्रकार देख भाल कर 1. जगनिस्सिएहिं भूएहिं तसनामेहिं थावरेहिं च / नो तेसिमारभे दंडं मणसा वयसा कायसा चेव / / उ०८.१० 2. न हु पाणवहं अणुजाणे मुच्चेज्ज कयाइ सव्वदुक्खाणं / / वही, 8.8 3. अज्झत्थं सव्वओ सव्वं दिस्स पाणे पियायए। न हणे पाणिणो पाणे भयवेराओ उवरए / / वही, 6.7 4. हओ न संजले भिक्खू मणं पि न पओसए / तितिक्खं परमं नच्चा भिक्खू-धम्मं विचिंतए / / वही, 2.26 5 अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम् / मनुस्मृति, 2. 156 6. वयगुत्ती मणगुत्ती इरियासमिदी सुदाणनिक्खेवो / अवलोयभोयणाए हिंसाए भावणा होति / / चारित्त पाहुड, गा० 31
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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