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________________ परं तत्त्वमनुध्यायन् योगी स्याद् ब्रह्मवित्त / 10 _ ऐसे जाज्वल्यमान, लोकोत्तर, आनन्दमय, अगम, अगोचर, परमतत्वज्ञान, परमेष्ठी अरिहन्त परमात्मा का सर्वोत्कृष्ट विशद एवं गम्भीर सूक्ष्म विश्लेषणात्मक प्रतिपादन में ही जैन दर्शन की महनीयता सिद्ध है। ____ डॉ. जगमहेन्द्र सिंह राणा द्वारा लिखित प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का उद्देश्य भी उपर्युक्त ओंकार स्वरूप परमतत्त्व परमेष्ठी परमात्मा का यथार्थ विवेचन करना है। यद्यपि डॉ. राणा जन्मतः जैन नहीं हैं किन्तु सुसंस्कारों तथा जैनसन्त, मुनि एवं आचार्यों के सम्पर्क में बचपन से ही रहने के कारण वह पूर्णतः जैन हैं। प्रशान्त मूर्ति सन्त मुनियों की अमृततुल्य वाणी से ही प्रभावित होकर डॉ० राणा ने शिक्षा की उच्चतम उपाधि पी-एच. डी. जैन-दर्शन में धारण करने का प्रणिधान किया। यह जैन सन्त, महान् गुरुओं का उन्हें अदृष्ट आर्शीर्वाद ही है जिससे कि डॉ. राणा ने समग्र जैन वाङमय का पारायण कर श्रमसाध्य सार सारभूतज्ञानान्वित प्रकृत समालोचनात्मक प्रबन्ध में परमतत्त्व परमात्मा अरिहन्त, अरिहन्ततीर्थकर, तीर्थकर का समवशरण, तीर्थंकर अवतार नहीं, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु इन पांच परमेष्ठियों के सम्पूर्ण आचार-विचार एवं गुणों का मनोज्ञ सरल एवं सुबोध शैली में सुन्दर प्रतिपादन किया है, जो अत्युत्तम बन पड़ा है। मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है कि महान् योगीसन्त, प्रवर्तक पण्डितरत्न स्व. पू. श्री शुक्लचन्द्र जी म० की जन्मशती- उत्सव पर यह उपादेय ग्रन्थ- जैनदर्शन में पंचपरमेष्ठी प्रकाशित हो रहा है। पूर्ण विश्वास है कि यह रचना विद्वानों एवं शोधार्थी पाठकों को अधिक पसन्द आएगी। ___ डॉ. राणा जैनदर्शन में युवापीढ़ी के प्रबुद्ध अधिकारी विद्वान् हैं। आपकों मेरा हार्दिक साधुवाद है और आशा है भविष्य में भी इनके द्वारा रचित जैनवाङ्मय विषयक अन्य कतिपय रचनाओं से सुरभारती का अक्षर भण्डार वृद्धिंगत होगा, ओम् शान्ति / -------------------- 10 . द्र० महापुराण (आदिपुराण) 21/236 डी०-११५, विश्वविद्यालय परिसर, : कुरुक्षेत्र दिनांक : 24 अक्टूबर 1995 (डॉ० धर्मचन्द्र जैन) प्रोफेसर एवं निदेशक, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या संस्थान, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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