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________________ सिद्ध परमेष्ठी 91 'सिद्ध होने वाले जीव अधिकतम संख्या पुरुष स्त्री नपुंसक जैन साधु (स्वलिंगी) . जैनेतर साधु (अन्य लिंगी) गृहस्थ शरीर की सर्वाधिक अवगाहना वाले शरीर की सबसे कम अवगाहना वाले शरीर की मध्यम अवगाहना वाले ऊर्ध्वलोक से अधोलोक से मध्यलोक (तिर्यक् लोक) से जलाशयों से समुद्र से पुरुषलिंगी जैन साधु में सिद्ध होने की सर्वाधिक योग्यता : - उपर्युक्त आंकड़ों को देखने से यह ज्ञात होता है कि सिद्ध होने की सर्वाधिक योग्यता मध्यलोकवर्ती मध्यम शरीर की अवगाहना वाले पुरुषलिंगी जैन साधुओं में हैं। यहां यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जिस जीव को जिस स्थान में जिस प्रकार के छोटे-बड़े शरीर के वर्तमान रहने पर सिद्ध होने की योग्यता की पूर्णता प्राप्त हो जाए वह उसी स्थान से और उसी शरीर से सिद्ध हो जाता है। मनुष्य गति में ही मुक्ति-लाभ : यहां यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि देव, नरक एवं तिर्यञ्च गति से सिद्ध होने वाले जीवों की संख्या का विशेष रूप से उल्लेखन करके सामान्यतः पुरुष, स्त्री व नपुंसकलिंगी जीवों के विषय में ही बतलाया गया है / इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि मनुष्य गति वाला जीव ही सीधा मुक्ति को प्राप्त कर सकता है, अन्य देव आदि गति वाले जीव मनुष्य-पर्याय में आकर ही मुक्त हो सकते हैं। 108
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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