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________________ कुशल व्यक्तित्व के धनी लाला हमीरचन्द्र जी स्वभाव में नम्रता, व्यवहार में शालीनता, वाणी में मधुरता, हृदय में विशालता, कार्य में दक्षता तथा मन में अगाध धर्म आस्था आदि अनेक गुणों से ओतप्रोत लाला हमीरचन्द्र का जन्म सन् 1911 में नाभा के सम्भ्रान्त दम्पति श्री सीताराम गर्ग व श्रीमती द्रौपदी देवी गर्ग के यहां हुआ। आपके पिता श्री नाभा नरेश श्री हरिसिंह जी के वरिष्ठ सलाहकार थे। माता-पिता से विरासत में मिले उच्च व धार्मिक संस्कारों ने आपके आचार-विचार को नवीन आयाम व सशक्त दिशा प्रदान की। प्रारम्भिक शिक्षा नाभा में ही पूर्ण हुई। जीवन में कठोर परिश्रम आपको करना पड़ा। आप हाईकोर्ट चण्डीगढ़ में सेवारत रहे / प्रथम रजिस्ट्रार के पद पर अपनी सेवाएं देते रहे। सरकारी नौकरी होने के पश्चात् भी आपकी रूचि सामाजिक कार्यों में निरन्तर बनी रही। जैन समाज के प्रति आप पूर्ण समर्पित रहे / कला, साहित्य व शिक्षा के प्रति आपका विशिष्ट लगाव रहा। वर्षों तक जैन समाज नाभा के आप प्रधान रहे। अपने अध्यक्ष व कार्यकाल में आपने श्री रामस्वरूप जैन सीनियर सेकेन्डरी स्कूल की संस्थापना की, जो स्कूल वर्तमान में सफलता से गतिशील व नाभा के प्रमुख स्कूलों में अपनी पहचान बनाये हुए है। हजारों बच्चे वहां शिक्षा व नैतिकता को ग्रहण कर रहे हैं। आपकी प्रधानता में कई मुमुक्षु आत्माओं ने जैन भागवती दीक्षा को भी अङ्गीकार किया। आप व्याख्यान वाचस्पति कविरत्न श्री सुरेन्द्र मुनि जी म. के चरणकमलों के विशिष्ट अनुरागी थे। ___ आपके पांच सुपुत्र व सात सुपुत्रियां हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती कमलादेवी आपके आदर्शों के प्रति पूर्णतया समर्पित हैं। आपके अधूरे कार्यों को पूर्ण करने में वह प्राणपन से लगी हुई है। पंजाब प्रवर्तक स्व. श्री शुक्लचन्द जी म. के जन्म शताब्दी वर्ष के शुभावसर पर आपके सुपुत्र श्री भुवनेश मोहन ने अपनी माता व युवामनीषी मुनि श्री सुभाष जी म. की मंगल प्रेरणा से इस शोध प्रबन्ध-जैनदर्शन में पञ्च परमेष्ठी को पाठकों के समक्ष लाने में अपनी उत्तम व नेक कमाई का सदुपयोग करके शिक्षा व विद्वानों के प्रति सात्त्विक अनुराग का परिचय दिया है। हम हृदय से श्रीमती कमला देवी के प्रति आभार अभिव्यक्त करते हैं। प्रधान श्री सुरेन्द्रमुनि जैन फाऊण्डेशन बराड़ा, जिला अम्बाला (हरियाणा)
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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