SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 55 ) 1928 में प्रतिष्ठित हुई है और इसमें पाषाणमय कुलप्रतिमा 25 हैं / दूसरा मन्दिर केशवजी नायक की चेरीटी धर्मशाला के पिछले भाग में है, जो गृहदेवालय है / इसमें ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण और वर्द्धमान इन चार शाश्वत जिनेश्वरों की श्वेतवर्ण दो दो फुट वडी चारो दिशा में एक एक प्रतिमा विराजमान है, जो सं० 1921 की प्रतिष्ठित हैं / तीसरा गृहमन्दिर केशवजी नायक की पत्नी वीरबाई की पाठशाला में है / इसमें मूलनायक श्रीमहावीरप्रभु की श्वेतवर्ण सवा फुट बडी प्रतिमा है, जो सं० 1921 की प्रतिष्ठित है / यह मन्दिर विक्रम संवत् 1954 में नया बना है। इसके वायें तरफ के होल में जैन पाठशाला और लायब्रेरी है, जिसमें साधु साध्वी जुदी जुदी नियत टाइम पर व्याकरणादि ग्रन्थों का अभ्यास करते हैं। चोथा छोटा शिखरबद्ध जिनालय मोती सुखिया की धर्मशाला में है। इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव आदि 16 पाषाणमय जिनप्रतिमा स्थापित हैं, जो सं० 1948 में यहाँ प्रतिष्ठोत्सव सह स्थापन की गई हैं / पांचवां शिखरबद्ध जिनालय जसकुंवरसेठाणी की धर्मशाला में है, इसके मूलनायक श्रीचिन्तामणिपार्श्वनाथ हैं, जो यहाँ सं० 1949 में विराजमान किये गये हैं। छट्ठा जिनालय मुर्शिदाबादवाले बाबू माधवलालजी की धर्मशाला में है / इसमें मूलनायक श्रीसुमतिनाथ
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy