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________________ (20) पहाड की सहलीनदी की समीपवर्ती गुफा में से प्राप्त हुईथी / सेठने यहाँ लाकर महोत्सव पूर्वक स्थापन की। वाद में 'टोबा' के पठानोंने उस प्रतिमा के नव टुकडे कर दिये / तब धांधलशाहने कहीं से दूसरी पार्श्वनाथ प्रतिमा मंगवा के स्थापन करने का विचार किया। लेकिन अधिष्ठायकदेवने स्वप्न में सेठ को कहा कि-खंडित पार्श्वनाथप्रतिमा के टुकड़ों को कंसार में दबा कर मन्दिर में रख देना और नववें दिन निकाल के उसीको स्थापन करना / सेठने ऐसा ही किया, परन्तु सातवें दिन किसी गाँव का संघ आया, संघपतिने नाकारा देते हुए भी दर्शनातुरता से सातवें दिन ही उस प्रतिमा को कंसार से बाहर निकाल ली, जिससे उसमें सांधे रह गई, जो अब तक ज्योंकी त्यों दिखाई देती हैं / वस, धांधलशाहने उसी पार्श्वनाथ-प्रतिमा को गादीनशीन कर दी, और दूसरी पार्श्वनाथ-प्रतिमा को उसके समीपवाली दूसरी देवकुलिका में विराजमान कर दी। यह प्रतिमा भी बड़ी सुन्दर, प्राचीन और दर्शनीय है। मुख्य जिनमन्दिर के चारों ओरकी 52 देवकुलिकाएँ भी विक्रम सं० 1415 से 1483 तक की बनी हुई हैं और वे बृहत्तपागच्छ, मलधारीगच्छ, उपकेशगच्छ, ... 1 जीरावला से आध कोश पश्चिम में यह गाँव है /
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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