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________________ ( 195 ) द्वितीय मंदिर धर्म जिणंद का, अजरामर हो जात ॥ज०॥७॥ सूरिराजेन्द्र अरिहा की पूजा, यतीन्द्र सुखिया थात ॥ज०॥८॥ बेलामंडन-श्रीपद्मप्रभुजिन-स्तवनम् / तर्ज-आशागोडी. हक मरना हक जीना प्यारे, हक से भजो भगवाना। पद्मप्रभु का भजन करन से, मिलेगा मोक्ष का ठाणा ॥प्या० 1 कोशाम्बिपुर में जन्म है आपका, श्रीधर तात ठवाना / सुसीमादे की कुंख दिपावन, हे प्रभुपा गवाना ॥प्यारे०२ पद्मकमल का जंघा में लंछन, चन्द्र विकाशित जाना। द्विशत धनुष की काया कोमल,लेना जीग्रन्थ प्रमाना॥प्या०३ छत्रवृक्ष की निर्मल छाँये, केवलज्ञान प्रगटाना / भविजन का उद्धार करते, मोक्ष में झंडा जमाना ॥प्या०४ बेलामंडन भवदुःख खंडन, नित नित जातरा जाना। पूरण प्रेम से भक्ति करके, निष्कंटक सेज बिछाना ॥प्या० 5 क्या है सुन्दर पद्म की प्रतिमा, रंग बादाम समाना / उगणीस नेऊ साल में आये, मंडल मुनि तीन ठाना॥प्या०६ सूरिराजेन्द्र रवि महाराजे, आतम ध्यान जगाना / यतीन्द्रमुनि श्रीपद्म की सेवा, मांगे हो मस्ताना // प्या०७
SR No.023536
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1935
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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