________________ ( 118 ) केवलज्ञान कल्याणक इसी वन में हुआ है और इसीसे यह स्थान पवित्र तथा पूज्य माना जाता है। दीक्षा और केवलज्ञान के स्थान पर यहाँ दो देवकुलिकाओं में नेमिनाथजी के चरणयुगल स्थापित हैं। इन्हीं के पास सेठ देवचंद लखमीचंद पेढी की तीन चश्मे की धर्मशाला है, जिसमें जैनयात्री दो घडी विश्राम लेते हैं। 14 ऊपरकोट ( गिरनार ) सहसावन से एक कोश ऊंचा चढने बाद 'ऊपरकोट' टेकरी आती है, जो गिरनार की प्रथम मुख्य टोंक कहलाती है और इसका दूसरा नाम श्रीनेमनाथ टोंक है / १-यहाँ तीर्थाधिप श्रीनेमिनाथजी का विशाल जिनालय है, जो उत्तुंग, सौधशिखरी, पांच बडे जिनमन्दिर और अनेक देवकुलिकाओं से परिवृत है। इसके अन्दर बाहर सर्वत्र संगमर्मर की पचरंगी लादियाँ जडी हुई हैं, जिससे यह देवविमान के समान दिखाई देता है। इसके मुख्य मन्दिर में मूलनायक श्रीनेमिनाथजी की श्यामवर्ण अतिप्रभावशालिनी प्रतिमा विराजमान है और देवकुलिका तथा भूमिगृह आदि में भी अति मनोहर जिनप्रतिमाएँ अपरिमित स्थापित हैं। २-इससे पूर्व लगते ही ' मेकरवसी' है, जो निज सजधज और कारीगिरी कला में अद्वितीय और चारो और देवकुलिकाओं से शोभित