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________________ इस मन्दिरसे उत्तर लगते ही 'श्रीराजेन्द्र-भवन' नाम की बडी धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें व्याख्यानालय के पास ही दाहिने भाग में मकराणी पाषाण की एक छोटी छत्री में महाराज श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी की चरण-पादुका स्थापित हैं। इन चरण पादुका पर इस प्रकार लिखा है कि-- .. " संवत् 1982 मगसिरसुदि पूर्णिमायां चन्द्रवारे राजगढ-वास्तव्य-लालचंद-चम्पालाल-खजांचिना श्रीराजे न्द्रसूरीश्वर-पादुका कारिता / प्रतिष्ठितं च मुनि यतीन्द्रविजयेन ". इसी भवन के चोक में महावीर-मन्दिर की वाम-भाग की भीती-बारी के पास एक गुरु-मन्दिर बना हुआ है / इसकी प्रवेश-द्वार की बगल की भांत पर एक शिलालेख लगा है, जिसमें लिखा है कि--- ___ "श्रीसौधर्मबृहत्तपागच्छीय खजानची दोलतराम हीराचंद-सोभागमल, समीरमलने इस गुरुमन्दिर को वनवाया व उसमें जैनाचार्य श्री श्री 1008 श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के कर-कमलों से अञ्जनशलाका कराके श्रीपार्श्वनाथ आदि 4 मूर्तियाँ बिराजमान की और श्रीसंघ को समर्पण किया। संवत् 1963 मगसिरसुदि 2, मु. राजगढ / ( माळवा )". राजेन्द्र-भवन के प्रवेश-द्वार के ऊपर के एक शिला-लेख में लिखा है कि--
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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