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________________ (281) अमावास्या पर्व के दिन कुंभागे को भी निभाडा नहीं सुलगाना चाहिये / उपरोक्त तिथियों में जो जीवहिंसा करेगा उसको 4 द्रम्म का दंड होगा / नाडोल के रहनेवाले साधु धार्मिक सुश्रावक सुभंकर के पुत्र चूतिग और सालिगने कृपातत्पर हो प्राणियों के हितार्थ विनति करके यह फरमान पत्र कगया | श्रीपूनपानदेव की सही, पारिख लक्ष्मीधर पुत्र ठाकुर जयपालने इस फर्मानपत्र को लिखा।" पृ० 214-16 2 रामसेण- (41) 1." सं० 1289 वैशाख वदि 1 गुरुवार के दिन वाघेला गजसिंह के पुत्र केल्हण उसके भाई वाग्भट आदिने पार्श्वनाथ की पंचतीर्थी कगई और पं० पूर्णकलशने उसकी प्रतिष्ठा की।" पृ०२१९ (42) 2-" वर्तमान शासन के नायक भगवान् वद्धमानस्वामी की शिष्य परंपरा में वन की उपमा धारण करनेवाले वजाचार्य हुए / उनको शाखा ( वनीशाखा ) में स्थानीयकुलोद्भुत, चन्द्रकुलीन महामहिमावंत वटेश्वराचार्य हुए / ३-वटेश्वराचार्य से थारापद्रनगर के नाम से 'थारापद्र' नामक गच्छ उत्पन्न हुआ, जो सब दिशाओं में प्रसिद्धि पाया और जिसने अपने निर्मल यश से सब दिशाओं को उज्ज्वल बनाई / __4-5 इस गच्छ में अनेक विद्वान आचार्य उत्पन्न होकर स्वर्गवासी होने बाद ज्येष्ठाय नामक प्राचार्य हुए, फिर क्रमशः शान्तिभद्र, सिद्धान्तमहोदधि सर्वदेवसूरि और शालिभद्रसूरिजी हुए, जो ( शालिभद्रसूर ) सग्ल प्रकृति के निधान और गच्छ की चिन्ता करनेवाले थे।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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