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________________ (245) 72 जिनालय सौधशिखरी जिनमंदिर था / लेकिन यह विशाल मन्दिर मुसलमानी हमलों में तोड दिया गया / इसके इस समय यहाँ की जमीन से अनेक नक्सीदार पत्थर निकलते हैं और सैंकडों पत्थर यहाँ के कुओं में भी लगे हुए देख पडते हैं। विधिपक्ष ( अंचल ) गच्छीय बडी पट्टावली जो जाम. नगरवाले पं० हीरालाल हंसराज के तरफ से गुजराती में प्रकाशित हुई है / उसके पृष्ठ 89 पर लिखा है कि 'कात्यायनगोत्रीय श्रीमाली सेठ मुंजाशाहने भोरोल में अंचलगच्छ की वल्लभी शाखा के प्राचार्य पुण्यतिलकसूरिजी के उपदेश से विक्रम सं० 1302 में शिखरबद्ध जिनमन्दिर बनवाया और उसकी प्रतिष्ठा कराई और एक वाव बंधवाई; कुल सवा क्रोड रुपया खर्च किया। ___संभव है कि चौदहसौ चवालीस स्तम्भोंवाला विशाल जिनमन्दिर सेठ मुंजाशाह का ही बनवाया हो। वर्तमान में मुंजाशाह की वाव भी यहाँ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मौजूद है और उसके बनाने में हजारो रुपया लगने का स्वाभाविक अनुमान किया जा सकता है / इस कसबे की सपाट भूमि के धौरों के खोदने से अव भी अनेक खंडित प्रतिमाएँ निकलती हैं। सं० 1922 भाद्रवा शुदि 3 के दिन नष्टावशिष्ट एक जीर्ण तालाव के डुब्बे को खोदते हुए श्यामवर्णवाली 2 // फुट बड़ी श्रीनेमनाथस्वामी की सर्वावयवपूर्ण मूर्ति प्रगट हूई थी, जो भोरोल के एक गृहमन्दिर में स्थापित है / यह मूर्ति अतिशय प्रभावशालिनी है। इस प्रान्त के कई
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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