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________________ (232 ) - इनके सिवाय संघवी-सेरी में भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी का एक गृह-मन्दिर फिर भी था, परन्तु वह भूमिशायी हो गया / इस समय इसका खंडेहर पड़ा है और इसकी सर्वधात की मूलनायक श्रीमुनिसुव्रतस्वामी सहित 26 जिनप्रतिमाएँ देसाई-सेरी के श्रीविमलनाथजी के गृह-मन्दिर में विराजमान हैं / इस जिनालय के लगते ही दहिने तरफ झमकाल-देवी का देवल है जो श्रीविमलनाथ भगवान् की अधिष्ठायिका देवी है और उसका असली नाम विजया-देवी है। ___ थराद से पश्चिम-दक्षिण कोण में 25 कदम के फासले पर 'वरखड़ी' नामक स्थान पर एक छोटा परकोटे सहित देवल है, इसमें प्राचीन समय के श्रीगोडी-पार्श्वनाथ के चरण स्थापित हैं। इनकी प्रातष्ठा किसने कब की और कब यहाँ स्थापित हुए इसका कोई पता नहीं है। सेठों की सेरी में रहनेवाले महात्मा ( कुलकर ) उत्तमचं. दजी के मकान की एक जुदी कोठरी में भी प्राचीन छोटी आठ जिन प्रतिमाएँ स्थापित हैं। सं० 1979 में यहाँ ओडजाति के जेठा के मकान की राँग खोदते समय जमीन में से श्रीवासुपूज्य भगवान की पाषाणमय ?, और सर्वधात की चोबीसी, पंचतीर्थी 24 एवं 25 जिनप्रतिमाएँ निकली थीं, जो संवत् 1976 श्रावणसुद 8 के दिन महोत्सव के साथ भगवान् श्रीमहावीरस्वामी के गृह-मन्दिर में विराजमान की गई हैं। यहाँ सब से प्राचीन और प्रभावशालिनी मूर्ति श्री अजि
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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