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________________ (171 ) (प्रथम ), 11 सिकन्दरखान, (द्वितीय ), इनके बाद सन् 1535 से 1553 पर्यन्त लगातार अठारह वर्ष तक जालोर रियासत बिहारियों के अधिकार से निकल कर बलोच और राठोडों के अधिकार में रही, और बाद में देहली के बादशाह की प्रसन्नता से पीछी मलेकखान विहारी को मिल गई। 12 मलेकखान, 13 गजनीखान (द्वितीय ), 14 पहाडखान ( प्रथम ), इसके बाद इस्वीसन् 1618 से 1680 तक जालोर पर दिल्ली के जहांगीर बादशाह की हकुमत रही और शहेनशाह के भेजे हुए हाकम हकुमत करते रहे। उनके नाम ये हैं ( 1 ) महाराज शूरसिंह राठौड सन् 1618 से 1620, (2) सीसोदिया-भीमसिंहराणा सन् 1620 से 1621, ( 3 ) महाराज गजसिंह राठौड 1621 से 1638, (4) नबाब मीरखान 1638 से 1643, (5) नबाब फेज अलीखान 1643, (6) हंसदास राठौड 1643 से 1655, (7) महाराज जसवंतसिंह राठौड 1655 से 1679, और (8) महाराज सुजानासंह 1679 से 1680; इस प्रकार चौसठ वर्ष तक जालोर जागीर बादशाह के अधीन रह कर, सन् 1680 में दिवान कमालखान ( करणकमाल ) के भाई फतेहखान के अधीन हो गई और सन् 1897 में दुर्गादास राठौड़ के कृत उपकार के बदले में ओरंगजेब बादशाहने जालोर जागीर महाराज अजितसिंह राठौड को सोंप दी / तब से अब तक यह जागीर जोधपुर के नीचे उन्हीं के वंशजों के अधिकार में है।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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