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________________ (158 ) यह राणीस्टेशन से 2 // मीलके फासले पर है। इसमें प्राचीन समय का बना बावन जिनालय सौधशिखरी भव्यमन्दिर है / मन्दिर में मूलनायक श्रीपार्श्वनाथजी की सफ़ेदवर्ण की 1 हाथ बडी मूर्ति स्थापित है जिसके चारों तरफ सर्वधात के एक तोरण में तेवीस जिनप्रतिमाएँ हैं। कहा जाता है कि पहले यहाँ 15 वीं सदी का प्रतिष्टित तोरण लगा था, परन्तु उसको हटा कर यह दूसरा तोरण लगाया गया है, जो दोसौ वर्ष का पुराना है / यहाँ जैनों का एक भी घर नहीं है, परन्तु यहाँ की विशाल धर्मशाला के ऊपर के कमरे में एक पार्श्वनाथजैन-विद्यालय है, जिसमें 100 जैनबालक शिक्षण पाते हैं / बालकों के खान-पान आदि की व्यवस्था विद्यालय-कमेटी के तरफ से की जाती है / इस विद्यालय की प्रथम नींव घाणेरावनिवासी जसराजजी पोरवाड़ने डाली और बाद में विजयवल्लभसूरिजीने इस को कार्यरूप में परिणत किया। 137 राणी-स्टेशन___बी. बी. एन्ड. सी. आई. रेल्वे का यह स्टेशन है / इसी के दहिने भाग में दो लाइन का छोटा बाजार है / जिसमें जैनों की 50 दुकाने हैं और बाजार के बीच में एक सौधशिखरी अच्छा जिनमन्दिर है। इसमें मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी की एक हाथ बड़ी सुन्दर मूर्ति स्थापित है / मन्दिर के बाह्य प्रवेश द्वार के गोखडे के नीचे एक लेख लगा है / जिसमें लिखा है कि-' तपागच्छीय श्रीपूज्य विजयसिंहसूरि सन्तानीय यति तिलोकविजयजी के शिष्य यति यशोविजयजीने निजोपार्जित
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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