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________________ (153) एक धर्मशाला, और उसीके एक कमरे में जिनमूर्ति बिराजमान है / यहाँ व्यापार की अच्छी तरक्की होने से दिनों दिन बसति अच्छी जमती जाती है। 134 सांडेराव___अजमेर जानेवाली सडक के दहिने तरफ़ महादेव-पहाड़ी के नीचे बसा हुवा यह अच्छा कसबा है / इसे राव सांडेजीने बसाया, इसीसे इसका नाम सांडेराव पडा है / यहाँ जैनों में ओसवालों के 150 और पोरवाडों के 150 मिल के 300 घर हैं, जिनमें सनातन-त्रिस्तुतिकों के 20 घर और स्थानकवासियों के 60 घर हैं / यहाँ दो धर्मशाला, दो उपासरे और दो शिखरबद्ध मन्दिर हैं / एक बड़ावास में प्राचीन और विशालचोक में स्थित है / कहा जाता है कि यह मन्दिर राजा गन्धर्वसेन के समय का बना हुवा है / इसके मूलनायक श्री शान्तिनाथजी हैं, जो तोरण और परिकर सहित हैं। इनके दोनों तरफ पार्श्वनाथजी की दो प्रतिमाएँ बिराजमान हैं। मन्दिर के मंडप में दहिने भाग पर जिनप्रतिमाओं के सिवाय एक आचार्य प्रतिमा है / जिसकी पलाठी पर लिखा है कि "श्रीषंडेरकगच्छे पंडितजिनचन्द्रेण गोष्ठियुतेन विजयदेव नागमूर्तिः कारिता मुक्तिवांछता, संवत् 1167 वैशाखवदि 3 थिरपालः शुभंकरः" ___ इसके प्रवेशद्वार के अन्दर एक बारसाख के ऊपर लंबी दो पंक्ति का लेख जूनी लिपी में इस प्रकार उकेरा हुआ है
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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