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________________ (151) तीसरा चोमुखजी का मन्दिर है, जो तुलसाजी रामाजी पोरवाड़ का बनवाया हुआ और शिखरवाला है / इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेव आदि की प्रतिमाएँ बिराजमान हैं, जिनकी अंजनशलाका सं० 1956 वैशाखसुदि 15 गुरुवार के दिन कोरटा-तीर्थ में श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराजने की है और यहाँ स्थापना सं० 1661 माहशुदि 6 के रोज हुई है। __चौथा मन्दिर त्रिस्तुतिक संप्रदाय का है, जो बिशाल और मजबूत धर्मशाला के ऊपरी भाग में है / इसको शा० बन्नाजी मेघाजी पोरवाड़ने बनवाया है, जो अतिरमणीय और दर्शनार्थियों के चित्त को लुभानेवाला है / इसमें मूलनायक श्रीअजितनाथजी की दो फुट बड़ी सफेदवर्ण की भव्य मूर्ति बिराजमान है, जिसकी अञ्जनशलाका-प्रतिष्टा संवत् 1945 माहसुदि 5 के दिन श्रीमद विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने की है। इस सुअवसर पर दोसौ जिन प्रतिमाओं की अञ्जनशलाका भी की गई थी। ___ पाचवां मन्दिर वीरप्रभु का है, जो घर देरासर है / इसमें मूलनायक श्रीमहावीरस्वामी की मूर्ति बिराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा और अंजनशलाका * सं० 1972 माहसुदि 5 के दिन यति रूपसागरजी और नाडोलवाले यति प्रतापरतनजीने की है। जैनशास्त्रों का कथन है कि असंयती, अविरति और अप्रत्याख्यानी यतियों की प्रतिष्टित जिनप्रतिमा पूजनीय नहीं होती, अतः इसका पूजन और नमन करना विचारणीय है। छट्ठा मन्दिर कलापुरा में है, जो दो मंजिला गृह देरासर है। नीचे के भाग में मूलनायक श्रीऋषभदवस्वामी की मूर्ति स्था
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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