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________________ (45) यही मुंजराना एकवार कूए के किनारे पर जाकर खड़ा था,. उसी समय कुछ स्त्रियाँ पानी भरने के लिये आई। उन्होंने पानी निकाल ने के लिए रेट को फिराया। रेंट ऊँ ऊँ शब्द करने लगा। उस को देखकर मुंज बोला: रे ! रे ! यंत्रक ! मा रोदीः कं कं न भ्रमयन्त्यमूः / कटाक्षाक्षेपमात्रेण कराकृष्टस्य का कथा ? // ___ भावार्थ-हे यंत्र ! हे रेंट ! मत रो। स्त्रियों ने अपनी भ्रू-मंगी में किस को नहीं ममाया है ? जब इन की भ्रभंगी ही इतनी जबर्दस्त है तब इन के हाथों की तो बात ही क्या है ? ये तुझे दोनों हाथों से पकड़ कर फिरा रही हैं। इसमें तेरी शक्तिहीनता नहीं है। इस विषय का अब विशेष विस्तार न कर; भव्य पुरुषों को इतनी ही सलाह देंगे कि हे भव्य पुरुषो! यथासाध्य विषय वासना को छोड़ने का प्रयत्न करो। इस उत्तम मनुष्य देह को पाया है तो इसको सार्थक करो। शास्त्र सुनो, शुद्ध श्रद्धा रक्खो, देव-गुरु की सेवा करो, अपनी शक्ति के अनुसार नियम ग्रहण करो और उन्हें पालो, आगे बढ़ो और विषयरूपी विषवृक्ष की छाया से हमेशा बचते रहो।" ____ जिस समय श्रीऋषभदेव प्रभु अष्टापद पर्वत पर समोसरे थे उस समय उनके पास उनके अठानवे पुत्र
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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