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________________ ( 530) रहे / इससे कोई हानिलाभ नहीं है / धर्म सात कुलों को पवित्र बनाता है। कहा है कि: धर्मः श्रुतोऽपि दृष्टो वा कृतो वा कारितोऽपि वा। अनुमोदितोऽपि राजेन्द्र ! पुनात्यासप्तमं कुलम् // भावार्थ--हे राजेन्द्र ! सुना हुआ, किया हुआ, कराया हुआ या अनुमोदन दिया हुआ, धर्म सात कुलों को पवित्र करता है / शंका-बार बार तीन वर्ग का ही नाम आता है / मोक्ष, मुक्ति या निर्वाण का तो कहीं नाम भी नहीं लिया जाता इसका कारण क्या है ? क्या मोक्ष तुम्हारी दृष्टि में अमान्य है ? उत्तर-मोक्ष, या निर्वाण के साधक मुनि होते हैं। और यहाँ गृहस्थों के कर्तव्यों का विवेचन किया जा रहा है / इसी लिए मोक्ष का नाम नहीं लिया गया है / जैन सिद्धान्तों में जितनी क्रियाएँ बताई गई हैं वे सब मोक्ष की साधक हैं। स्वर्गादि तो उनके अवान्तर फल हैं / जैसे अमुक नगर के पहुँचने के उद्देश्य से मुसाफरी करनेवाला मनुष्य मार्ग में आनेवाले नगरों में विश्राम लेने के लिए भी ठहर जाया करता है, जैसे ही मोक्षपुरी में जानेवाला जीव मुसाफिर स्वर्गादि स्थानों में उहर जाता है। जिनके सिद्धान्तों में मोक्षसाधक अनुष्ठान नहीं हैं वे अवश्यमेव नास्तिक हैं / मोक्ष के कारण सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र हैं / उनको प्राप्त करने के लिए प्रथम योग्यता प्राप्त करनी पड़ती है / उस योग्यता के
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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