SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 547
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (520) मावार्थ-लक्ष्मी के चार पुत्र हैं। उनके समान भाग हैं। उनके नाम हैं- धर्म, अग्नि, राना, और चोर। इनमें सबसे बड़ा और माननीय पुत्र धर्म है। इसके . अपमान से तीन भाई नाराज होते हैं। अर्थात् धर्म नहीं करनेवाले मनुष्य की लक्ष्मी भग्नि द्वारा नष्ट होती है। राजा द्वारा लुटी जाती है या चोरों द्वारा चुराई जाती है। इसलिए शास्त्र कारोंने कहा है कि, आयका चौथा भाग या आधा भाग धर्मकार्य में व्यय को / यदि इतना नहीं कर सको तो भी जितना किया जाय उतना तो अवश्यमेव करो। ऐमा कौन होगा जो चंचल धन को व्यय कर निश्चल धर्म रत्न को न खरीदेगा ! वास्तव में देखा जाय तो मनुष्य मात्र लाभार्थी है। मगर सब मनुष्य अपने धन की ठीक व्यवस्था नहीं करसकते इससे उनको पूर्ण लाभ नहीं होता है। शास्त्रों की भाज्ञानुसार जो अपने धन की व्यवस्था करता है उसीको पूर्ण ग्राम होता है / इसलिए प्रत्येक को चाहिए कि वह आय के प्रमाण में धर्मकार्य में जरूर धन खर्चे / बेरहवाँ गुण। षं वित्तानुसारतः / अर्थात् पोशाक वित्त-धन के अनुसार रखना मार्गानुसारी का तेरहवा गुण है। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं उन्हें दुनिया साहसी, ठग आदि कहकर पुकारती है। वह कहती है-पास में पैसा न होने पर भी छेलछबीला बना फिरता है। जान पड़ता है, यह किसी को ठगकर, पैसा
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy