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________________ (501) " यह कैसे माना जा सकता है कि तुम्हारा धन नीति पूर्वक उपार्जन किया हुआ है और हमारा अनीति पूर्वक / " सेठने कहा:-" परीक्षा कर के आप यह जान सकते हैं ? " राजाने मंत्री को बुलाया / एक सेठ की और अपनी ऐसे दो सोना महोरे, निशानी कर के कहा:-" मेरी महोर किसी पवित्र पुरुष को देना और सेठ की किसी महान पापी पुरुष को / " बुद्धिमान मंत्रीने विश्वस्त मनुष्यों को यह कार्य सोपा / सेठ की स्वर्णमुद्रा ले कर, पुरुष शहर की बाहिर निकला / उसने मच्छीमार को देखा और सौचा,-इसके बराबर दुनिया में दूसरा कौन मनुष्य पापी होगा ? यह हमेशा सवेरे ही निरपराध मच्छियों को अपने स्वार्थ के लिए मारता है / इस लिए यदि इस को महोर दूंगा तो यह इसका सूत ला कर जाल बनावेगा और विशेष मच्छियां पकड़ कर, विशेष पाप करेगा / ऐसा सोचकर, वह महोर मच्छीमार को दे कर चला गया / बिचारे मच्छीमार को अपने जन्म में पहिली ही वार महोर मिली थी। इससे वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसके पास कोई कपड़ा भी नहीं था कि, जिसमें वह महोर को बांध लेता / उसके पहिनने को एक लंगोटी मात्रथी, इस लिए उसने महोर को अपने मुंहमें रक्खा / नीति संपन्न महोर का कुछ अंश थूक के साथ उसके गले में उतरा / उसके विचार बदले ! उसने सोचा,-किसी धर्मात्माने धर्म समझ कर मुझ को यह महोर दी
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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