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________________ ( 194) है। सब तरह की कथाओं में धर्मकथा ही विजेता बनती है; सब तरह की ताकातों में धर्म की ताकात ही फतेहतया होती है और सब तरह के सुखों में धार्मिक सुखकी ही जयपताका फर्राती है। १७-पासे खेलने में जो मनुष्य आसक्त होता है उसका धन नष्ट होता है; मांस लोलुपी मनुष्यकी दया का विनाश होता है; मदिरासक्त मनुष्य का यश विलीन होता है और वेश्यासक्त मनुष्य के कुलका दुनिया से नामोनिशान उठ जाता है। १८-हिंसासक्त मनुष्य के प्रत्येक धर्म का नाश होता है; चौरी में आसक्त होने से शरीर नष्ट होता है; और परस्त्री लंपट पुरुष के द्रव्य और गुण का नाश होकर अन्त में वह अधम गति जाता है। १९-दरिद्र मनुष्य से दान होना कठिन है। ठकुराई में क्षमा रहना कठिन है; सुख निमग्न मनुष्य से इच्छाओं का निरोध कठिन है और जवानी में इन्द्रियनिग्रह कठिन है। ये चारों बाते अत्यंत कठिन हैं। २०-श्रीजिनेश्वर भगवानने संसारी जीवों का जीवितव्य (आयु। अशश्वत बताया है। इसलिये हे जीव ! तू साधुजन उपदेशित धर्म का आचरण करना / क्योंकि संसार में धर्म ही एक शरण है / यानी अनर्थों से बचानेवाला है। इसका सेवन करनेवाले जीव सदा सुखी रहते हैं; क्योंकि सुख का देनेवाला भी यह धर्म ही है।
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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