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________________ (489) ही संतोष है, क्षान्ति ही शौच धर्म है, शान्ति ही महादया है, महान स्वरूप, महान शक्ति, महान एर्धर्य, और महान धैर्य भी क्षान्ति ही है / शान्ति ही सत्य क्षान्ति ही परब्रह्म है, शान्ति ही परममुक्ति है, शान्ति ही सर्वार्थ साधक है, शान्ति ही जगतवंदनीय है, शान्ति ही जगतहितकारिणी है, शान्ति है संसार में सबसे उच्च है, शान्ति ही कल्याणकर्ता है, शान्ति ही जगत्पूज्य है; परममंगलकारक और सर्वव्याधि विनाशक औषध भी क्षान्ति ही है; रागादि महान शत्रुओं को नष्ट करने के लिए महान पराक्रमी चतुरंगिणी सेना है / विशेष क्या क्या कहें ? क्षान्ति में ही सब कुछ है // 8 // इस प्रकरण की पूर्णाहुति करने के पहिले श्रीगौतमकुल की बीस गाथाएँ यहाँ उद्धृत कर देना उचित है। ये सबके लिए महान हितकारिणी होंगी। लुद्धा नरा अत्थपरा हवन्ति मूढा नरा कामपरा हवन्ति / बुद्धा नरा खतिपरा हवन्ति मिस्सा नरा तिन्निवि आयरन्ति // 1 // ते पंडिया जे विरया विरोहे ते साहुणो जे समयं चरन्ति / ते सत्तिणो जेन चलन्ति धम्मं ते बंधवा जे वसणे हवन्ति // 2 // कोहाभिभूया न सुहं लहन्ति माणसिणो. सोयपरा हवन्ति / मायाविणो हुन्ति परस्स पेसा लुद्धा महिच्छा नरयं उर्विति // 3 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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