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________________ किया है / २३-मोहगर्भित वचन-जिनसे अत्यन्त राग, प्रेम उत्पन्न हो-बोलना प्रेमिकी क्रिया है। २४-क्रोध और मान में आकर विपरीत वचन-जिस से दूसरों के हृदयों में ईर्ष्या उत्पन्न हो-बोलना द्वेषिकी क्रिया है / और २५-प्रमाद रहित मुनिवरों को तथा केवलियों को गमनागमन की जो क्रिया लगती है वह इपिथिकी क्रिया है। इन 42 भेदों के अतिरिक्त आस्रव के मंदभाव, तीव्रभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, वीर्य विशेष और अधिकरण विशेष से विशेष भेद भी होते हैं / तीव्र, तीव्रतर और तीव्रतम भावों से तीव्रादि आस्रव आते हैं और मन्द मन्दतर और मन्दतम भावों से मन्दादि आस्रव आते हैं / तदनुकूल जीवों के कर्मों का बंध भी पड़ता है / इसी लिए संसार में सीव्र, मंदादि भाव प्रसिद्ध हैं। वीर्यविशेष यानी आत्मीय क्षयोपशमादि भाव / अधिकरण विशेष के दो भेद हैं। जीवाधिकरण और अजीवाधिकरण / जीवके आश्रय से जो आस्रव होते हैं उन्हें जीवाधिकरण कहते हैं और अजीव के आश्रय से जो आस्रव होते हैं उन्हें अजीवाधिकरण कहते हैं / जीवाधिकरण के मूल तीन भेद हैं और उत्तर भेद 108 हैं / मूल भेद हैं संरंभ, समारंभ और आरंभ / तत्त्वार्थ भाष्य में इनका स्वरूप इस तरह बताया गया हैं:
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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