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________________ (438) संश्लेष्यन्ते च शाल्मल्यो वज्रकंटकसंकटाः / तप्तायःपुत्रिका क्वापि स्मारितान्यवधूरतम् // 14 // संस्मार्य मांसलोलत्वमाश्यन्ते मांसमंगलम् / प्रख्याप्य मधुलौल्यं च पाय्यन्ते तापितं त्रपुः // 15 // भ्राष्टकंडुमहाशूलकुंभीपाकादिवेदनाः / / अश्रान्तमनुभाव्यन्ते भृज्यन्ते च मटित्रवत् / / 16 // छिन्नभिन्नशरीराणां भूयो मिलितवर्मणाम् / नेत्रागानि कृष्यन्ते वककंकादिपक्षिभिः // 17 // एवं महादुःखहताः सुखांशेनापि वर्जिताः / गमयन्ति बहुँ कालमात्रयस्त्रिंशसागरम् // 18 // भावार्थ-६-नरकगति में सात विभाग हैं। उनमें से पहिले के तीन भागों में उष्ण वेदना है; चौथे माग में उष्ण और शीत दोनों प्रकार की वेदनाएँ हैं और पाचवें, छठे और सातचे भाग में केवल शीत वेदना है / ७-उष्ण या शीत नरक में यदि लोहे का पर्वत पड़ता है तो वह उस जमीन पर पहुँचने के पहिले ही गल जाता है, या उसका चूरा हो जाता है। 1वे परस्पर लड़ते हैं। दुःखी होते हैं। पन्द्रह प्रकारके परमाधामिक देव दोते हैं। वे क्रीडा करनेके लिए नरक में जाते हैं और नारकी के जीवों को अत्यन्त दुःख देते हैं। इस प्रकार एक दूसरे को दी हुई वेदना; क्षेत्रवेदना और परमाधार्मिक कृत
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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