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________________ (15) समुद्र के पार जा सकता है १३-इसिलिए सत्पुरुषों को चाहिए कि वे सांसारिक संबंधों को छोड़कर, अनश्वर, अनुपम, भनन्त और अव्यावाध सुख को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करे / . उक्त श्लोक सदा स्वनाम की तरह आत्मकल्याणाभिलाषी पुरुषों को कण्ठस्थ रखने चाहिए.। इन श्लोकों में स्पष्टतया एकत्व भावना का स्वरूप बताया गया है। जबतक प्राणियों के अन्तःकरण में एकत्व भावना रूप अंकुर उत्पन्न नहीं होता है, तबतक सच्चा वैराग्य नहीं होता है / वैराग्य के अभाव में उनको चार गतियों के असंख्य कष्ट सहन करने पड़ते है। चार गतियो में रहनेवाले जीवोंमें से एक भी जीव को वास्तविक सुख नहीं है / जिस को जीव सुख कहते हैं, वह सुखामास मात्र है। तो भी जीव विष्ठा के कीड़े की तरह उसमें लिप्त रहते हैं। हम यहाँ चार गतियों का दिग्दर्शन कराते हैं। En-san s arSong / दुःखमय संसार। पारावार इवापारसंसारो घोर एष भोः ! / प्राणिनश्चतुरशीतियोनिलक्षेषु पातयन् // 1 // श्रोतियः श्वपचः स्वामी पत्तिब्रह्मा कृमिश्च सः। संसारनाठ्ये नटवत् संसारी हन्त ! चेष्टते // 2 //
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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