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________________ (425 ) तलवार की सहायता से निष्कंटक बनाते हैं; बड़े बड़े भयकर व्यक्तियों के सामने भी अपने अभिमान को नहीं छोड़ते हैं; वे ही काल की जरासी भ्रूभंगी से दाँतों में अंगुली दबाने लगते हैं / १०-मुनियों के निष्पापापाचरण और तलवार की धार के समान व्रतसे भी काल का प्रतिकार नहीं हो सकता है। ११अहो ! यह विश्व, शरणहीन, अराजक, अनायक और प्रतिकार रहित ज्ञात होता है। क्योंकि उसको कालरूपी राक्षस भक्षण कर जाता है। १२-प्रतिकार एक धर्म कहा जा सकता है; मगर वह भी मरण का नहीं। वह शुभ गति देता है, इसीलिए वह ( उपचार से ) प्रतिकार कहा जाता है। कारण यह है कि, काल धर्मिष्ठ पुरुषों को भी नहीं छोड़ता है। ____कोई शंका करे कि यदि काल का कोई प्रतिकार नहीं है तो फिर जीवों की मुक्ति कैसे हुई और होगी? इसका तेरहवें श्लोक में इस तरह उत्तर दिया गया हैं कि:- १३-दीक्षा रूपी उपाय को ग्रहण करके अक्षय सुखस्थान चौथे पुरुषार्थ-मोक्ष के लिएप्रयत्न करना चाहिए। इससे काल परास्त होगा और जीव अनुपम सुख का उपभोग कर सकेगा। अपवित्रता। उक्त श्लोकों से यह सिद्ध हुआ कि यह शरीर नाशमान और अशरण है / मगर यह शरीर अपवित्र भी है। शास्त्रकार कहते हैं:
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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