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________________ (373 ) हैं / व्यापारी लोग कर्जदारों के वचन सहते हैं, उनकी खुशामद करते हैं; बावा लोग लोहके कीलों पर सोते हैं, और ब्राह्मण द्रव्यही के लालच से पंचकेश बढ़ाते हैं। मगर जो आत्मार्थी पुरुष होते हैं, वे सामनेवाले पुरुष की सब शुभ या अशुभ बातें समभाव से सहते हैं / इसी लिए वे पूज्यतम या सच्चे वैरागी गिने जाते हैं। कहा है कि: समाववंता वयणामिघाया, कन्नं गया दुम्मणिभं जणंति / / धम्मुत्ति किच्चा परमग्ग सूरे निइंदिए जो सहइ स पुज्जो // भावार्थ-जब वचन रूपी प्रहार सामने से आ कर कानों में प्रवेश करते हैं, तब वे मन को खराब कर डालते हैं। उन्हीं प्रहारों को समता प्राप्त पुरुष- मेरा सहने का स्वभाव है ' यह समझ (वैराग्य वृत्ति से)- सहन करते हैं / वे है। पुरुष परम शर जितेन्द्रिय महापुरुष और पूज्य गिने जाते हैं / पूज्य होने का वास्तविक उपाय कषाय-विजय यानी वैराग्य-वृद्धि ही है। मोहादि का त्याग / वैराग्य-वृद्धि की इच्छा रखनेवाळे मनुष्य को मोहादि का . मी त्याग करना जरुरी है / जबतक मोह, राग, द्वेषादि कम नहीं होते हैं, तब तक वैराग्य की अभिवृद्धि नहीं होती है। इसलिए कहा गया है कि:-. ..
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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