SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन ग्रन्थरत्नों में एक यह भी (धर्मदेशना ) ग्रंथ है / यह ग्रंथ मूल गुजराती में लिखा गया था / गुजराती में इसकी चार आवृत्तियाँ निकल चुकी हैं, हिन्दी में इसका अनुवाद अभी तक नहीं हुआ था। आज हम यह हिन्दी अनुवाद हमारे हिन्दी भाषाभाषी भाइयों के करकमल में रखने के लिये सद्भागी होते हैं। इसका हिन्दी अनुवाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक कृष्णलालजी वर्माने किया है / एतदर्थ हम उनके आभारी हैं / . इस ग्रंथ के कर्ता स्वर्गस्थ महात्माजी के उपदेश में एक खास विशेषता थी / वह यह कि-यद्यपि श्रीविनयधर्मसूरीश्वरजी महाराज जैनाचार्य थे, परन्तु उनका उपदेश इस प्रकार सर्व साधारण के लिये ऐसा रोचक और उपयोगी होता था, किजिससे ब्राह्मण, जैन, क्षत्रिय, मुसलमान, पारसी, युरोपीयन, याहूदी-यावत् समस्त लोग मुग्ध होते थे। उसी उपदेश का इस पुस्तक में संग्रह है / ऐसा कह सकते हैं। सूरीश्वरजी जगत् के मनुष्यों को उपदेश देने में, जैसे वार्त्तमाणिक स्थिति का संपूर्ण ख्याल रखते थे, उसी प्रकार इस पुस्तक की रचना में मी रक्खा है। ____ इस ग्रंथ की हम क्या प्रशंसा करें ? / हाथ कंगन को आयने की जरुरत नहीं रहती / ग्रंथ स्वयं ही सामने उपस्थित है / ग्रंथकारने श्रुति, युक्ति, और अनुभूतिपूर्ण प्रत्येक बात
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy