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________________ ( 370 ) जो शान्त स्वभावी होता है उसको प्रायः क्रोध नहीं आता है। यदि कभी आ जाता है तो वह, उपशम भावों से उसको सत्काल ही मिटा देता है। इससे क्रोध के परिणाम, दुर्गति से वह बच जाता है / नम्र भावों से मान पास में हो कर भी नहीं फटकता है / सरल भाव तो माया का कट्टा शत्रु ही है। और सन्तोष लोभ का जानी दुश्मन है / लोमाधिकार में यह बात भली प्रकार से समझादी गई है / कषायें क्या करते हैं ? कोहो अ माणो अ अणिग्गहाआ, ___माया य लोभो य पवडमाणा / चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स // भावार्थ-वश में नहीं किये गये क्रोध और मान व बढ़ते हुए माया और लोभ-ये चारों कषायें-जन्मांतर को बढाने के कारणभूत पापरूपी वृक्ष को सिंचन करते हैं। माया का कारण मान और क्रोध का कारण लोम है। अर्थात् मान से माया पैदा होती है और लोभ से क्रोध पैदा होता है / इसलिए पहिले मान और लोभ इन दोनों को दूर करना चाहिए / निरभिमानी पुरुष कभी माया नहीं करता है। पुरुष माया इसी लिए करता है कि, जिससे उसका मान भंग न हो, और इस तरह मान की रक्षा के लिए वह हतभागी दांभिक
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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