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________________ ( 355) कुल, विशालबुद्धि, विशालमाता और जिसका विशाल वचन है, ऐसे वैशालिक भगवानने प्ररुपण किया है। मूल सूत्र में प्रथम महाव्रत बताया गया है। उसके पालन की बात यद्यपि विस्तार से नहीं बताई गई है; तथापि 'तिविहेण' इस पद से यह बता दिया गया है, कि 81 भागोंसे तो अवश्यमेव इस व्रत का पालन करना चाहिए। सामान्यतया जीव के 9 भेद हैं। चार त्रस और पाँच स्थावर / जैसे-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ये पृथ्वीकाय हैं / द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये त्रसकाय हैं। इस तरह 9 प्रकार के जीव होते हैं / इनको मन, वचन और कायासे मारना नहीं; इसतरह नौ को तीनसे गुणने से 27 होते हैं / अर्थात् 9 को मनसे मारना नहीं; 9 को वचनसे मारना नहीं और 9 को कायासे मारना नहीं / तीनों की जोड़ 27 हुई। इनको कृत, कारित और अनुमति से गुणने से 81 होते हैं। तार्य कहने का यह है कि, 9 प्रकारके जीवों को मन, वचन, और कायसे मारना नहीं, मरवाना नहीं, मारनेवाले को अच्छा समझना नहीं। प्रथम महाव्रत की रक्षाके लिए अन्य चार महाव्रतों की खास तौरसे आवश्यकता है। उनके विना पूर्णतया महाव्रत की रक्षा नहीं हो सकती है। इसलिए एकके कहने से पाँचों महाव्रतों को समझना चाहिए / पाँचों महाव्रतों से दश प्रकार के यतिधर्म की रक्षा होती है। दश धर्मों की रक्षा मुक्तिपद का
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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