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________________ (30) पात कीजिए / ये अवतार पृथ्वी रसातल में जा रही थी उस को धारण करने के लिए हुए थे / कूर्मने पृथ्वी को अपनी पीठ पर धारण कर रक्खा / यहाँ प्रश्न यह उपस्थित होता है कि, कूर्म किसके आधार पर रहा था ? यदि कहोगे कि, वे तो ईश्वर थे, सर्वशक्तिमान थे, इसलिए विना ही आधार के रह गये थे; तो यह कथन युक्तियुक्त नहीं होगा। क्योंकि जब वे सर्वशक्तिमान थे तब वे पृथ्वी को भी अपनी ही तरह निराधार टिका सकते थे। उनके कूर्म बनने की कोई आवश्यकता नहीं थी। क्यों उन्होंने गर्थ के दुःख झेलने का और तिर्यंच योनि में उत्पन्न होने का प्रयास किया ? पाठक सोचें, इसी तरह की बातें वराह के लिए भी हैं / वराहने जब पृथ्वी को अपनी डाढों में पकड़ रक्खी थी, तब वह स्वयं खड़ा कहा रहा था। आदि / चौथे अवतार में देवने नरसिंहरूप धारण कर शिवभक्त हिरण्यकशिपु को मारा और भक्त प्रह्लाद को इन्द्रपद दिया। इसका उच्च पद देनेवाले और अभक्तों के प्राण लेनेवाले हैं। यह व्यवहार रागद्वेष युक्त है / और जिसका व्यवहार राग, द्वेष युक्त होता है वह कभी वीतरागी नहीं कहला सकता है। . वामनरूप धारण कर बलि को मारने की अपेक्षा क्या यह
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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