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________________ (355 ) दैत्यने अनर्थ किया है। इसलिए शंखदैत्य का नाश करना चाहिए, और वेदों को वापिस पृथ्वीतल में लाना चाहिए।" ऐसा सोच, मत्स्यावतार धारण कर, देव रसातल में गये और दैत्य को मारकर वेदों को पीछे पृथ्वी पर लाये / यह पहिले अवतार की बात हुई। दूसरा और तीसरा अवतार / एकवार पृथ्वी पाताल में जाने लगी तब भगवानने कूर्मकछुए का अवतार धारण कर उसको पीठपर उठाली। और वराह रूप धारण कर दो डाढों से उसको पकड़ रक्खी। यह है कूर्म और वराह का अवतार की बाते / चौथा अवतार / हिरण्यकशिपु दैत्य का नाश करने के लिए, चौथा नरसिंहअवतार हुआ। दैत्य प्रायः शिवभक्त होते हैं। वे शिवजी की आराधना करते हैं / एकवार हिरण्यकशिपु दैत्यने शिवजी की पूर्णतया भक्ति की / शिवजीने प्रसन्न होकर उसको वरदान दिया कि-" तेरी मोत सूखे से या गीले से, अग्नी से या पानीसे; देव से या दानव से या तिथंच से किसीसे भी नहीं होगी।" हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद विष्णु का भक्त हुआ। हिरण्यकशिपु को यह बात ज्ञात हुई। अपने देव शिव का लोप करने के अपराध में उसने खूब मारा, बाँधा, पीटा मगर वह 'विष्णु विष्णु ' ही
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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