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________________ - ( 342 ) हुआ है / शुभ सामग्री की प्राप्ति शुभकाल का सूचक है और अशुभ सामग्री अशुभ की / श्रीऋषभदेवस्वामी अपने पुत्रों को कहते हैं कि,-" हे महानुभावो ! द्रव्य से त्रसपन, पंचेन्द्रिय पटुता, सुकुलोत्पत्ति और मनुष्यजन्म आदिका; क्षेत्र से आर्य क्षेत्र का भारतभूमि के अंदर 32 हजार देश है। उनसे साढे पचीस आर्यक्षेत्र हैं / ब.कोके अनार्य / आर्यक्षेत्र में जन्म होना काठन है / वह उसका काल से अवसर्पिणी चौथे आरे के काल का कि जिप्स में धर्मकरणी सुगमता से होती है; और भाव से शास्त्र श्रवण धर्मश्रद्धा, चारित्राचरण और कर्मक्षयोपशमानुप्तार विति परिणाम आदिका, मिलना कठिन है। मगर ये सब शुभ सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं। द्रव्य सामग्री क्षेत्र सामग्री की खास अपेक्षा रखती है / जिस क्षेत्र में धर्मचर्चा नहीं होती उस क्षेत्र में द्रव्यसामग्रो अनर्थ को पैदा करती है। द्रव्य, और क्षेत्र दानों सामग्रियों की प्रापि हो; मगर यदि काल सामग्री न मिले तो कार्य की सिद्धि न हो / क्योंकि जिस काल में तीर्थकर विचरण करते हों, या सुविहित आचार्य, उपाध्याय और मुनिवर विचरते है; तबही जीव दोनों सामग्रियों से लाभ उठाया करते हैं। अन्यथा प्राप्त दोनों सामग्रिया व्यथ जाती हैं / पुण्य के योग से द्रव्य, क्षेत्र और कालरूप त्रिपुटी सामग्री भी मिले; मगर उसमें सेनापति के समान भाव न हो तो कार्य की सिद्धि नहीं होती है। और इस त्रिपुटी के बिना केवल भाव भी भावनारूप ही रह
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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