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________________ (305) उच्छंखल व्यवहार करने लगता है। इसीलिए श्रीवीतराग भागवानने साधुओं को विषय-वांछा नहीं करने का उपदेश दिया है। सूत्रकार फिर कहते हैं: मा पच्छ असाधुता भवे अच्चेही अणुप्तास्न अप्पगं / अहियं च असाहु सोयती संथणइ परिदेवइ बहु // 7 // हइ जीवियमेव पासह तरुणो एव वाससयस तुट्टइ / इत्तरवासे य बुन्झह गिद्धनरा कामेसु मुच्छ्यिा // 8 // भावार्थ-मरण समय में या भवान्तर में कहीं असाधुता न होजाय इसलिए हे मुनि ! कामका संग छोड़ और आत्मा को उपदेश दे कि, हे आत्मन् ! खराब काम करनेवाला परलोक में नरक और तिर्यंचादि गति में जाकर पराधीनता भोगता है और नरक में जाता है तो परमाधार्मिक देवों की और तिथंच होता है तो अन्यान्य तिर्यंचो या सबल मनुष्यों की मार खानी पड़ती है / रात दिन रुदन करना पड़ता है / इस संसार में और बात तो दूर रही मगर जीवन भी अनित्य है / कई तो तरुणावस्था ही में चल बसते हैं। वर्तमान समय की सौ बरस की आयु सागरोपम के आगे किसी हिसाब में नहीं है। ऐसा होने पर मी विषय-गृद्ध जीव काम में ही आसक्त होते हैं। ____ जो अपनी अच्छी हालत में धर्म नहीं करते हैं उन्हें मरते समय भारी पश्चात्ताप होता है / वे दुःखपूर्वक उद्गार निकालते हैं कि-"हमने धर्म नहीं किया, अब हमारी क्या दशा होगी ?" / 20
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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