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________________ ( 197 ) हे राजा ! जरा विचार तो करो कि यदि उस को पेटी में बंद करती तो क्या आपको बता देती ! यह देखो तुम्हारे पैरों से पेटी के नीचे का तख्ता हिलजाने से उसके अंदर की गंगाजल की और इतर की शीशियाँ फूट गई। ये शीशियाँ तो मैंने तुम्हें स्नान कराने के लिए रक्खी थी।" सुनकर राजाने सोचा, रानी ठीक कहती है। यदि ब्राह्मण पेटी में होता तो रानी कभी नहीं बताती / दासियोंने तत्काल ही ब्राह्मण का पेशाब गना के शरीर पर चुपड़ दिया। मूत्र जरा खारा था इसलिए राजा के शरीर में चटपटी लगी। रानीने कहा:अत्तर बहुत ऊँची कीमत का था इसीलिए ऐसा लगता है। इस तरह समझाकर उसने राजा को दासियों के साथ स्नानागार की तरफ रवाना किया। तत्पश्चात् पेटी खोलकर रानीने ब्राह्मण को बाहिर निकाला और कहा:-" महाराज ! नौ लाख चरित्रों के अंदर तुमने यह चरित्र भी सीखा है या नहीं ? जाओ, अब जल्दीसे अपने घर चले जाओ।" विचारा ब्राह्मण घर गया / उसी दिनसे उसने स्त्री-चरित्र वर्णन न करने की प्रतिज्ञा लेली।" प्रिय पाठक ! सोचो कि, स्त्रीचरित्र जब स्त्रियों के चरित्रों को जाननेवालों को भी इस तरह चक्कर में डाल देता है तब जो नहीं जानता है उसकी तो क्या दशा करता होगा ? शास्त्रकारोंने स्त्रीके फंदपाश से छुटे हुए को मुक्त के समान कहा है सो ठीक ही है / धर्म रत्न के समान पदार्थ तो किसी भाग्य
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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