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________________ ( 294) आपकी बाततक नहीं सुनता, फिर आनेकी तो चर्चा ही क्या है ? वह महान दृढ विचारी जान पड़ता है।" दासी की बात सुनकर बुद्धिमती राणीने सोचा कि ब्राह्मण प्रायः लोभी होते हैं। और यह सामान्य नियम है कि द्रव्येण सर्वे वशिनो भवन्ति ( द्रव्य से सब ही वश होते हैं। ) राणीने दोसौ सोनामहोरें दासी को दीं। और यह कह कर उस को रवाना की कि-ब्राह्मण के सामने जाकर सोनामहोरें रख देना जिससे वह अवश्यमेव तेरा नाम ठाम पूछेगा। दासीने जाकर ऐसा ही किया / चमकीली सोनामहोरें देखते ही ब्राह्मण भी चमका और बोला:-" बाई तुम कौन हो ? किस हेतु से यहाँ आये हो ? " दासीने उत्तर दिया:-" महारान ! मैं राजराजेश्वर की पट्टरानी की दासी हूँ। हमारी राणी साहिबा आपके ज्ञान से और आपकी चतुराई से बहुत प्रसन्न हुई है / आपकी पूजा के लिए सब सामग्री तैयार की गई है / एक थाल सोनामहोरों का भरके आपके लिए तैयार रक्खा है। इसलिए मैं आपको हमारे बाई साहेब के पास ले जाने के लिए आई हूँ।" दासी की बातें सुन लोभ से ब्राह्मण के मुँह में पानी भर आया / वह पघड़ी सिर पर रख, दुपट्टा कंधे पर डाल दासी के साथ रवाना हुआ। रानी के पास पहुँचा / चमकती हुई सोनामहोरों से भरा हुआ थाल रानीने झटके आगे राखा / भट मन ही मन सोचने लगा,-सारी उम्र भर नौकरी करने पर भी इतना धन नहीं मिलता सो धन आज सहज ही में
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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