SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 287 ) विरोध भाव रहित बराबर चलरहा है। जो मतमतान्तर और गच्छादि हुए हैं वे प्रायः पदार्थ विलोपी नहीं हैं / क्रियाकांड में भेद है, सो भले स्वगच्छानुसार किया जाय। जिसकी कृति कषायभाव रहित होगी उसको अवश्यमेव फल मिलेगा। आत्मकल्याण के लिए जो क्रिया की जाति है, वह सकाम निर्जरा बताई गई है। उसका करनेवाला चाहे सम्यक्त्वी हो चाहे मिथ्यादृष्टि / सम्यग्दृष्टि जो क्रिया करता है वह भी सकाम निर्जरा ही बताई गई है / हाँ, सकाम निर्जरा में न्यूनाधिक भेद अवश्य होंगे / जीव-चाहे वह कोई हो-यदि आग्रह और निदान रहित त्याग, वैराग्य, इन्द्रियनिग्रह और तपोविधानादि करेगा तो ये कर्ममल को नष्ट करने में अवश्यमेव जलका काम देंगे। ये फिर चाहे थोड़ी जलधार के समान कार्य करें और चाहे बड़ी जलधारा के समान / तत्ववेत्ताओं के वचन सरल, सुंदर और पक्षपात रहित होते हैं। जैनशास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि-" श्वेतांबर हो या दिगंबर, बुद्ध हो किंवा अन्य कपिलादि हो / चाहे कोई भी हो / जो समताभावों से आत्मचिंतवन करेगा, यानी कषाय भावों को जलाजुली देगा वह अवश्यमेव मुक्तिगामी होगा / " इसी कारण से जैन सिद्धान्तों में पन्द्रह भेद से सिद्ध बताये गये हैं। अन्य लिंगी भी मोक्ष महल में पहुँच सकते हैं / क्योंकि वास्तव में तो देव, गुरु और धर्म की श्रद्धा व पदार्थ तत्त्व का यथार्थ ज्ञान ही मुक्ति रूपी वृक्ष का अवध्य बीज है / वर्तमान में 49
SR No.023533
Book TitleDharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1932
Total Pages578
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy